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पक्षियों की उत्पत्ति और पूर्वज-परम्परा, Origin and Ancestry of Birds

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पक्षियों की उत्पत्ति और पूर्वज-परम्परा


 Origin and Ancestry of Birds

दुर्भाग्यवश, पक्षियों के जीवाश्म इतनी प्रचुर संख्या में उप- लब्ध नहीं हैं 

जितने कि सरीसृपों तथा स्तनियों के। कदाचित उनका वृक्षवासी स्वभाव 

उनके जीवाश्मों के रूप में संरक्षित होने के लिए अनुकूल नहीं था। अतः 

पक्षियों की उत्पत्ति और विकास की समस्या अनबूझ एवं गूढ़ बनी हुई है। 

लेकिन आधुनिक पक्षियों और सरीसृपों की तुलनात्मक शारीर, भ्रौणिकी तथा 

जीवाश्मिकी पर आधारित त्रिविध प्रमाणों से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि 

पक्षियों का उद्भव सरीसृपीय पूर्वजों से हुआ है। सौभाग्य से 1861 में, 

एन्ड्रिआस बैगनर द्वारा जर्मनी में प्रसिद्ध पक्षी जीवाश्म, आर्किओप्टेरिक्स 

लिथोप्रैफ़िका (Ar- chaeopteryx lithographica) की खोज हुई। इसमें 

सरीसृपों और पक्षियों, दोनों के लक्षण पाये जाते हैं। यह कदाचित पक्षियों को 

सरीसृपों से जोड़ने वाली विकास-श्रृंखला की अप्राप्त कड़ी (missing link) 

को दर्शाता है। आर्किओप्टेरिक्स आज से लगभग 13 करोड़ पूर्व जुरैसिक 

काल में पाया जाता था, जो किसी प्राणी के लिए मीसोज़ोइक स्यूडोसूकिआ 

(Pseudo- suchia) सरीसूपों एवं आधुनिक पक्षियों के बीच की संयोजी कड़ी 

(connecting link) होने के लिए उचित माना जा सकता है। निसंदेह, 

आर्किओप्टेरिक्स सभी आधुनिक पक्षियों का निकटतम पूर्वज था।




पक्षियों में उड़ान या उड्डयन की उत्पत्ति


पक्षियों का अभिगमन या प्रवास


पक्षी कंकड़ पत्थर क्यों खाते हैं




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आर्कोसौर पूर्वज



Archosaur ancestors

यद्यपि आर्किओप्टेरिक्स को सरीसृपों और पक्षियों के मध्य एक संयोजक 

कड़ी माना जाता है, तथापि इसके और पक्षियों के वास्तविक सरीसृप-पूर्वजों 

के बीच का अवकाश भरना बाकी है। जैसा की हम पिछले किसी अध्याय में 

पहले वर्णन कर चुके हैं, मीसोज़ोइक महाकाल सरीसृपों के विविध समूहों, 

विशेषतया डाइऐप्सिड आको आकोंसॉरियनों (diapsid archo- saurians), 

अर्थात समकालीन प्रबल सरीसृपों (ruling reptiles), के महान अनुकूली 

विकिरण का समय था। प्रबल या शासक सरीसृपों का एक बड़ा पूर्वज समूह 

स्यूडोसूकिआ (Pseudosuchia) या थीकोडॉन्शिआ (Thecodontia) 

कहलाता था, जिसके उदाहरण साल्टोपोसूकस (Salto- posuchus) और 

यूपारकेरिआ (Euparkeria) थे। वे छोटे, द्विपादी व माँसाहारी सरीसृप थे। 

उनके पश्चपाद अप्रपादों से बहुत लम्बे थे। पैर में तीन अँगूठे आगे तथा 

पादांगुष्ठ (hallux) पीछे था। दृढ़पटली वलय (selerotic rings) सहित बड़े 

नेत्रकोटर थे। दाँत दीर्घित जबड़ों के गर्तों में स्थित थे। वे पक्षियों के सम्भावी 

दूर के पूर्वज होने के लिये पर्याप्त सामान्यीकृत थे।


स्यूडोसूकियनों के आश्चर्यजनक विविध रूपों (array) में से केवल तीन समूह 

टेरोसोरिया (Pterosauria), सॉरिस्किया (Saurischia) और ऑर्निथिस्किया 

(Ornithischia) - सम्भाव्य या संभावित पक्षी-पूर्वज (potential avian 

ancestors) हो सकते हैं। प्रत्येक समूह के कुछ सदस्यों में पक्षी-सम लक्षण 

होते थे। पहले यह माना जाता था कि पक्षी भयानक, हल्की-अस्थियुक्त, 

कलामय पंखयुक्त तथा उड़ने वाले सरीसृपों, टेरोसॉर्स (pterosaurs) या 

टेरोडैक्टाइल्स (pterodactyles), से उत्पन्न हुए हैं। लेकिन, आजकल इस मत 

का समर्थन नहीं किया जाता है।


आरम्भ के ऑर्निथिस्कियनों (ornithischians) में से कुछ, जैसे इग्वैनोडॉन 

(Iguanodon और कैम्पटोसॉरस (Camp- tosaurus), द्विपादी जन्तु थे। परन्तु 

द्विपादता (bibedalism) अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में कुछ सॉरिस्कियनों 

(saurish- chians), जैसे स्टूथिओमिमस (Struthiomimus) और 

आर्निथोमिमस (Ornithomimus), में लक्षित थी। ये बाद के प्रारूप आकार में 

अत्यन्त पक्षी समान थे। ये तीन पादांगुष्ठों पर चलते थे और इनके अत्यन्त 

हासित हाथ में भी 3 अंगुलियाँ थीं, जिनमें से एक सम्मुख एवं पकड़ने में 

प्रयुक्त होती थी। उनकी करोटि हल्की बनी हुई थी, और चोंच-समान मुख में 

दाँत नहीं थे। सम्भवतया ऐसा उनके अंडे खाने के स्वभाव के कारण था। 

आजकल, ऐसे पंखहीन रूपों को प्रायः पक्षियों के पूर्वज माना जाता है, 

जिन्होंने किसी प्रकार पिच्छ विकसित किये और उड़ने लगे। इसी प्रकार के 

मिलते-जुलते पूर्वजों से टैरोडैक्टाइल बाद में विकसित माने जाते हैं। उनमें 

पिच्छ या पर नहीं पाये जाते थे। वे केवल चमगादड़ समान चमड़ैले पंखों पर 

इधर-उधर विसर्पण (glide) कर सकते थे।




 प्राक्-पक्षी 


Proaves

परन्तु इन सब सम्भाव्य पक्षी-पूर्वजों में जत्रुक (clavicle) या हँसली 

(wishbone) नहीं पाई जाती थी। यह तथ्य कि आर्किओप्टेरिक्स सहित सब 

उड़ने वाले पक्षियों में -रूपी हंसली या विशबोन (wish bone) होती है, 

इसका अर्थ है कि पक्षियों के निकट-पूर्वजों में इसका अभाव कदापि नहीं हो 

सकता है। इसके अतिरिक्त इन सभी पूर्वज सरीसृपों में अन्य अनेक प्रकार 

के अत्यन्त विशिष्ठ लक्षण भी थे जो पक्षी-समान नहीं थे। इसी कारण वे तुरन्त 

पक्षियों के पूर्वज प्रभव (ancestral stock) होने के अयोग्य ठहराये जाते हैं। 

अत्यन्त विशिष्टीकृत होने से वे पक्षियों के प्रत्यक्ष वंशक्रम में नहीं हो सकते। 

पक्षियों से उनकी समानताओं में से कुछ अभिसरणों (convergenes) के 

कारण प्रतीत होती हैं। सम्भवतया, पक्षी-प्रभव एक और अधिक पूर्वज प्ररूप 

से, पर्मियन (Permian) या उससे भी पूर्व काल में, प्रकट हुआ था। हेलमैन 

(Heilmann) ने अपेक्षाकृत सामान्यीकृत स्यूडोसूकियनों और प्रथम पक्षियों 

के बीच की इस परिकल्पित संयोजक कड़ी को प्रापक्षी (proavis) नाम दिया।





पक्षियों की द्विमूलोद्भवी उत्पत्ति


 Diphyletic origin of birds

सर्वाधिक आरम्भिक ज्ञात जीवाश्म पक्षियों में उड़ने वाले (आर्किओप्टेरिक्स, 

इक्थिओर्निस) और उड्डयन-हीन (हेस्पेरोर्निस, डायट्रिमा), दोनों प्रकार के 

प्ररूप हैं। हाल ही में विलुप्त मोआज़ (moas) और गज पक्षी (elephant 

birds) भी उड्डूयनहीन थे। सर्वाधिक आद्य जीवित पक्षी या रेंटिटी 

(शुतुरमुर्ग रौआ, कैसोवरी, आदि) और पेंग्गविन्स भी उड्डयनहीन हैं। इसने 

कुछ लेखकों, विशेषतः पी. आर. लोई (P. R. Lowe) को पक्षियों की 

द्विमुलोद्भवी उत्पत्ति (diphyletic origin) अर्थात् अवतरण की दो रेखाओं 

में विश्वास करने को प्रेरित किया। वे मानते हैं कि आज के उड्डयनहीन और 

उड्डयनशील पक्षी विभिन्न उड्डयनहीन पूर्वजों से अवतरित हुए हैं। लोई के 

अनुसार आज के उनुयनहीन पक्षी कभी भी उड़ने योग्य नहीं थे, और उनके 

पंख अब विकृत या हासित नहीं हैं, बल्कि उनके पूर्व इतिहास के किसी भी 

समय की अपेक्षा आज अधिक विकसित हैं।





पक्षियों की एक-मूलोद्भवी उत्पत्ति


Monophyletic origin of birds

रैटिटी (Ratitac) में टाँगें भली-भाँति विकसित और शक्तिशाली, पंख 

अवशेषी और पिच्छ रोयेंदार (fluffy) होते हैं। परन्तु हाल में पाया गया 

स्वीटजरलैंड के इओसिन (Eocene) काल का जिवाश्म, एल्यूहेरोर्निस 

(Eleuheronis), जिसे आधुनिक-कालीन शुतुरमुर्ग का एक संम्भावी पूर्वज 

माना जाता है, आधुनिक शुतुरमῄ की अपेक्षा उडुयनशील पक्षियों से अधिक 

निकटवर्ती बधुतायें प्रदर्शित करता है। यह तथ्य पक्षियों की द्विमूलोद्भवी 

उत्पत्ति की धारणा को एक गम्भीर आघात पहुँचाता है। आज अधिकतम 

जीवाश्म-विज्ञानिकों का विश्वास है कि रैटिटी को अपेक्षा कैरिनेटी 

(Carinatac) अधिक आद्य हैं। अनुमानतः रैटिटी उड्डयनशील पूर्वजों से 

विकसित हुए हैं परन्तु प्रचुर भोजन और कम प्रतियोगी या शत्रु वाले क्षेत्रों में 

स्थलीय जीवन पद्धति अपनाने के लिये वे फिर से अनुकूलित हो गये। आज 

सर्वाधिक स्वीकृत मत के अनुसार पक्षियों की उत्पत्ति एक मूलोभनी 

(monophyletic) या एक वंश-क्रम रेखीय (one-line-of-descent) है, अर्थात 

सभी पक्षी आर्किओप्टेरिक्स के निकटस्थ किसी एक ही पूर्वज से उत्पन्न हुये 

हैं। तदनुसार, उड्डयनहीन पक्षी उड्डयनशील पूर्वजों से उड़ान की हानि द्वारा 

विकसित हुए हैं। ज्ञात प्रमाण भी इसी मत का समर्थन करते हैं।




पक्षी विशिष्टीकृत या उत्कृष्ट सरीसृप हैं


Birds are Glorified Reptiles

लगभग एक सदी पूर्व, टी. एच. हक्सले (T. H. Huxley) ने पक्षियों को 

"उत्कृष्ट सरीसृप" कहा था। इसका अर्थ है कि पक्षी किसी सरीसृपीय पूर्वज 

से विकसित हुए हैं और वे अपने संगठन में अपेक्षाकृत अधिक विकसित हैं। 

तुलनात्मक शारीर, भ्रौणिकी और जीवाश्मिकी द्वारा प्रस्तुत त्रिगुण प्रमाण 

तथा फ़ॉसिल आर्किओप्टेरिक्स के समान मध्यवर्ती या संक्रामी रूप निसंदेह 

इंगित करते हैं कि पक्षी किसी सरीसृपीय पूर्वज के अत्यन्त विशिष्टीकृत 

वंशज हैं।


उन चरणों और आवेगों को, जिनके अन्तर्गत सरीसृप प्रभव से पक्षियों का 

विकास हुआ, अभी उचित रूप से नहीं समझे गये हैं। पूर्वज सरीसृपों से 

पक्षियों की उत्पत्ति की कोई भी विधि और दिशा रही हो, आधुनिक पक्षी 

अपने सरीसृपीय पूर्वजों से सुस्पष्ट उत्कर्ष या श्रेष्ठता प्रदर्शित करते हैं।


सरीसृपों पर पक्षियों की श्रेष्ठता या उत्कृष्टता दर्शाने वाले मुख्य परिवर्तनों में 

से कुछ निम्न प्रकार हैं :


1. नियततापता (Warm-bloodedness): जबकि सरीसृप सामान्यतया 

सुस्त, शीत-रुधिरीय या असमतापी (piokilothermous), और भूमि-परिबद्ध 

होते हैं; पक्षी सक्रिय, ऊष्ण-रुधिरीय या नियततापी (homoiothermous). 

सतर्क और अन्य किसी जन्तु की अपेक्षा अधिक स्फूर्ति वाले होते हैं। उनकी 

उपापचय-दर अपेक्षाकृत ऊँची होती है और उद्नुसार सावधानीपूर्वक 

नियंत्रित उच्च देह-तापक्रम होता है। समतापता या नियततापता उन्हें वर्ष-

पर्यन्त समान रूप से सक्रिय बनाये रखती है।


2. हुन गमन (Rapid locomotion): उड्डयन की क्षमता के कारण पक्षी 

अधिक तीव्र गतिं से प्रचलन करते हैं जो सम्भवतया जन्तु-जगत् में सबसे 

अधिक दक्ष या कार्यक्षम भी होता है।


3. पिछ या पर (Feathers): सरीसृप शल्कों से पक्षी पिच्छों की व्युत्पत्ति 

(derivation) निश्चय रूप से प्रगति-सूचक है। इससे पक्षियों का उड़ना 

सम्भव हुआ है। कुचालक पिच्छी आवरण देह-अम्मा को संरक्षित रखता है 

और पक्षियों को निपततापी बनाता है। अमपादों पर पिच्छों के दीर्घन ने उन्हें 

उयन के उड्यन लिये पंखों में रूपान्तरित कर दिया है। इस प्रकार, पिच्छों 

की विविधता और रंजन सरीसृ‌पों के साधारण व एक-जैसे शल्कों पर प्रगति 

दर्शाते हैं।


4. पूर्णतया चार-वेश्मीय हृदय (Completely 4-cham- bered heart): 

स्तनधारियों की भाँति पक्षियों का हृदय दोहरे परिसंचरण (double 

circulation) सहित चार-कक्षीय होता है जिसमें शुद्ध और अशुद्ध रुधिरों का 

मिश्रण नहीं होता। जबकि, सरीसृपों में निलय (ventricle) का अपूर्ण 

विभाजन होने से दोनों प्रकार के रुधिरों का आंशिक मिश्रण होता है।

पक्षियों में केवल दाहिनी ओर का अकेला दैहिक चाप (systemic arch) होता 

है, जबकि सरीसृपों में दोनों दैहिक चाप होते हैं।


5. अवशेषी वृक्क-निवाहिका तंत्र (Vestigial renalportal system): 

सरीसृपों में वृक्क निवाहिका तंत्र भली भाँति विकसित होता है, परन्तु पक्षियों 

में अवशेषी होता है। स्तनधारियों में यह बिल्कुल नहीं होता है।


6. बेहतर फेफड़े (Better lungs): पक्षियों में श्वसन तंत्र अत्यन्त विकसित 

होता है। नायु-कोषों (air-sacs) के विकसित होने से फेफड़े पूर्ण वातन 

(acration) करते हैं और सरीसृपों की अपेक्षा अनेक गुणा अधिक प्रभावी 

होते हैं।


7. स्वर (Voice): मौन सरीसृपों के विपरीत, पक्षियों ने अपने गीतों और 

ध्वनियों की विविधता सहित स्वर का विकास किया है।


8. बेहतर वृक्क (Better kidneys): पक्षियों के वृक्क पश्ववृवकीय 

(metanephric) होते हैं, परन्तु सरीसृपों में न पाई जाने वाली दो विशिष्टतायें 

प्रदर्शित करते हैं। प्रथम, मूत्रनलिकायें अपेक्षाकृत अधिक लम्बी होती हैं,

 और द्वितीय, हेन्ले का पाश (loop of Henle) नामक एक U-रूपी खंड प्रायः 

उनके बीच में होता है। यह दशा स्तन-धारियों के समान होती है।


9. बेहतर मंत्र (Improved systems): अन्तः कंकालीय पेशीय आहार और

जनन अंग भी सरीसृप्तो से प्रगति दर्शाते हैं


10. बेहतर मस्तिष्क और संवेदांग (Better brain and scnscs): 

प्रमस्तिष्क और अनुमति के अधिक विकसित होने के साथ मस्तिष्क 

अनुपात में बड़ा होता है। दृश्य और अवण की ज्ञानेन्द्रियों अधिक विकसित 

होती है। नेत्र बेहतर समंजन-क्षमता (accommodation power) सहित 

अधिक कार्यक्षम होते हैं। कानों में कार्टी के अंग (organ of Corti) सहित 

कर्णावर्स (cochlea) होता है, और इसलिये, वे अधिक विकसित होते हैं।


11. अंडे (Eggs): पक्षियों के अंडे सरीसूपों के समान होते हैं परन्तु उनमें से 

अनेक रंगीन होने के कारण भिन्न होते हैं।


12. बुद्धि और व्यवहार (Intelligence and behaviour): पक्षियों में 

अपेक्षाकृत ऊँची कोटि की बुद्धि और व्यवहार पाया जाता है, जिसका 

सरीसृपों में अभाव होता है। उदाहरणार्थ :


(1) पैतृक रक्षण एवं अत्यधिक भावना-सहित कम-ज्यादा जटिल घोंसलों का 

निर्माण ।


(2)  जबकि अधिकतम सरीसृप अपने अंडों को स्फुटन के लिये साधारण 

पर्यावरणीय दशाओं में छोड़ देते हैं, सब पक्षी अपने अंडों को सेते हैं जिससे 

उनका स्फुटन और अच्छी उत्तरजीविता सुनिश्चित होते हैं।


(3) नियतकालिक प्रवास (periodic migrations), अर्थात अपने शीत और 

ग्रीष्म निवासों के बीच इधर से उधर भ्रमण करते हैं।


(4) चयनित संगम, अनुरंजन व्यवहार और साथी के प्रति प्रेम- सहित एक-

संगमनी (monogamous) जीवन ।


(5) जनन काल में चहचहाते एवं संगम ध्वनियाँ निकालते हैं। इस प्रकार 

"पक्षी विशिष्टीकृत या उत्कृष्ट सरीसृप होते हैं"


यह टिप्पणी करने में हक्सले पूर्णतया न्यायसंगत था।




रैटिटी: उड़ानहीन पक्षी


Ratitae: The Flightless Birds

जीवित पक्षियों को 2 मौलिक रूप से भिन्न या अपसारी विकासीय प्रभवों 

(divergent evolutionary stocks), वैलियोग्नैथी और कैरिनेटी, में रखा जाता 

है। जीवित पंखहीन या उड़ानहीन पक्षी उपवर्ग निओर्निधीज़ (Neornithes) 

के  अधिगण पैलियोग्नैथी (Palacognathae) यारैटिटी (Ratitae) से सम्बन्धित 

होते हैं। वे आद्यहन्वी (palacognathous) तालु, नौतलरहित (keelless) चाटी-

सदृश (raft-like) उरोस्थि, और तरंगित या घुंघराले (curly) परों द्वारा 

अभिलक्षित होते हैं। रैंटिटी और कैरिनेटी के अन्तरों को तालिका । 


सारर्णीबद्ध करती है। आज पृथ्वी पर रैटाइट्स अनेक जातियों द्वारा 

निरूपित होते हैं तथा उनका भूवैज्ञानिक काल की एक लम्बी अवधि तक 

अस्तित्व रहा है। ये पक्षी बहुत मिलते-जुलते हैं और सभी भूमि निवासी हैं। 

आकार में प्रायः बहुत बड़े होते हैं, कुछ की ऊँचाई 4 मीटर तक होती है। 

उनकी भली-भाँति विकसित शक्तिशाली टाँगें, छोटे सिर ओर रोयेंदार परों से 

युक्त अल्पवर्धित पंख होते हैं जो उड़ान के लिये बेकार होते हैं। वास्तव में 

सुरक्षा के लिये वे अपनी फुरती पर निर्भर होते हैं। एक रोचक तथ्य यह है कि 

सभी आधुनिक उड़ानहीन पक्षी संसार के उन भागों में रहते हैं जहाँ 

माँसाहारी जन्तु, अर्थात बिल्ली या भेड़िया वंश के सदस्य, नहीं होते हैं




असंतत वितरण


Discontinuous distribution

उड़ानहीन पक्षी असंतत वितरण का एक अनोखा उदाहरण प्रदान करते हैं। 

केवल जीवित जातियों पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि दक्षिण गोलार्थ 

के बड़े-बड़े भागों में से प्रत्येक में टिटी (या पैलियोग्नैथी) का केवल एक गण 

होता है, जो अन्य कहीं नहीं पाया जाता। वे दूरस्थ क्षेत्रों में वितरित रहते हैं 

जैसे दक्षिण अमरीका में रौआ, अफ्रीका और एशिया में शुतुरमुर्ग ऑस्ट्रेलिया 

में कैसोवरी और एम् और न्यूजीलैंड में कौवी। ग्रह वास्तव में अत्यन्त 

अचरजपूर्ण है कि इतने निकट सम्बन्धी दो वंश, जैसी रीआ (Rhea) और 

स्ट्रचिओ (Struthio), क्रमशः दक्षिण अमरीका और अफ्रीका जैसे परस्पर 

इतनी दूर स्थित क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जीवित सदस्यों का यूरोप और उत्तरी 

अमरीका में पूर्णतया अभाव होता है। परन्तु, वहाँ उनके जीवाश्मों का पाया 

जाना केवल यही सिद्ध करता है कि कभी उड़ानहीन पक्षी अपनी वर्तमान 

सीमाओं तक ही सीमित नहीं थे और सम्भवतया पृथ्वी के अधिकतर भाग पर 

व्याप्त थे।




उत्पत्ति


Origin

उड़ानहीन पक्षियों की उत्पत्ति और पूर्वज-परम्परा एक बहुत उलझन-पूर्ण 

समस्या रही है और इस संबंध में विभिन्न मत प्रकट किये गये हैं। सर्वाधिक 

स्वीकृत मत के अनुसार ये पक्षी उड़ने वाले पूर्वजों से विकसित हुए हैं और 

केवल द्वितीयक रूप से उन्होंने उड़ानहीन स्थलीय जीवन-पद्धति का पुनः 

अनुकूलन किया है। इसको इस तथ्य से भी समर्थन मिलता है कि रैटाइट्स 

में उड़ान के प्रति अनुकूलन दर्शाने वाले अनेक आकारिकीय लक्षण विद्यमान 

हैं। यह कल्पना करना कठिन प्रतीत होता है कि इनके पूर्वजों ने इन लक्षणों 

को अर्जित तो किया था पर वे उड़ने के योग्य नहीं थे। पूर्वज पक्षियों द्वारा 

उड़ान के अर्जन करने का एक कारण सम्भवतया भूमि पर अपने शत्रुओं से 

बच भागने के लिये अधिक योग्य होना था। यदि शत्रु हटा दिये जाते हैं, तो 

उड़ने की आवश्यकता भी नहीं रहती। फिर उड़ने की क्या आवश्यकता ? 

अतः भूमि पर जिन क्षेत्रों में प्रचुर भोजन आपूर्ति थी और व्यावहारिक रूप से 

कोई स्थलीय परभक्षी और प्रतियोगी नहीं थे, वहाँ पूर्वज रैटाइट्स ने 

स्वभाविकतया उड़ना बन्द कर दिया और पूरे समय पृथ्वी पर ही बने रहे 

जिससे अपनी शक्ति को केवल भोजन प्राप्ति के लिये संरक्षित रख सकते थे। 

रोमर (Romer) द्वारा प्रतिपादित उपरोक्त मत का समर्थन रैटाइट्स का 

आधुनिक भौगोलिक वितरण भी करता है। पे सब उन क्षेत्रों में रहते हैं जो 

अब या अतीत में भूमि पर पक्षियों के भयंकर शत्रुओं से मुक्त थे।


कतिपय रेटाइट्‌स की पूर्वज-परम्परा प्रारम्भिक सीनोज़ोइक महाकल्प 

(Cenozoic Era) तक अनुरेखित की जा सकती है। तब अनेक बड़े भूमि-

निवासी नियोग्नेशी पक्षी भी मौजूद थे। उस समय पक्षियों और आरम्भिक 

स्तनधारियों में उस भूमिक्षेत्र की विजय के लिये तीय प्रतियोगिता रही होगी 

जिसे तब तक बड़े सरीसृपों ने खाली कर दिया था। जब कि सामान्यतया 

स्तनधारी जीते, केवल थोड़े से भूमि-निवासी पक्षी भी जीवित बचे और उन्होंने 

ही आधुनिक उड़ानहीन पक्षियों को उत्पन्न किया।





रैटिटी के उदाहरण



1. शुतुरमुर्ग (Ostrich) 

अफ्रीकी शुतुरमुर्ग, स्टथियो कैमिलस (Struthio camelus), अफ्रीका के 

शुष्क क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह विश्व का सर्वाधिक 

विशाल जीवित पक्षी है जिसके नर की ऊँचाई 2-5 मीटर से अधिक और भार 

150 kg तक होता है। सिर, मोवा और टाँगों पर बहुत कम पर होते हैं। नर व 

मादा पक्षी अपनी पक्षति के रंग में भिन्न होते हैं। नर में पुच्छ और पंखों के पर 

सफ़ेद जबकि शेष पर काले होते हैं। मादा परिच्छद मलिन बभुई (sombre 

brownish) होता है। लम्बी सुदृढ़ टाँगें प्रशंसनीय रूप से ज़ेबरा और 

बारहसिंघे की तेज़ गति के लिये अनुकूल होती हैं, जिनके साथ यह भोजन 

करता और विचरता है। यह एक तेज़ धावक है जो 80 किमी प्रति घन्टा की 

गति से दौड़ सकता है तथा एक कदम में ४ मीटर से भी अधिक पार कर 

जाता है। प्रत्येक पैर में कुंठ नाखून-युक्त केवल 2 पादांगुष्ठ होते हैं। अन्दर 

का अँगूठा काफी बड़ा और पंजेदार होता है। चोंच और पैर दोनों बचाव के 

हथियारों का कार्य करते हैं। भोजन मुख्य रूप से बीजों और फलों सहित 

शाकों का होता है। प्रचलित मत के विपरीत, शुतुरमुर्ग ख़तरे के अवसर पर 

अपना सिर रेत में नहीं छिपाता। शुतरमुर्ग 10 से 50 तक के समूहों में इधर-

उधर घूमते हैं। वे बहुसंगमनी (polygamous) होते हैं क्योंकि एक नर अनेक 

मादाओं का सहवर्ती होता है। नर में एक ठोस आकुंचनशील शिश्न (penis) 

होता है, जबकि मादा में एक भगशेफ़ (clitoris) होता है। शुतरमुर्ग में एक 

अनोखी विशेषता यह पाई जाती है कि मूत्र अवस्कर में सांद्रित होकर विष्ठा 

से पृथक् त्यागा जाता है। शुतुरमुर्ग का अंडा आकार में मैकरल शॉर्क 

(mackerel shark) के बाद बहुत बड़ा होता है। प्रत्येक अंडा लगभग 1.5 

किग्रा भारी होता है जिसे उबालने में 50 मिनट आवश्यक होते हैं। शुतरमुर्ग 

का माँस घटिया होता है और भोजन के बहुत कम काम आता है। वयस्क 

पक्षी के पर महिलाओं द्वारा सजावटी पिच्छों की भाँति प्रयोग किये जाते हैं। 

मोटी त्वचा से चमड़ा बनाया जाता है। शुतरमुर्ग आसानी से पाले जाते हैं और 

अफ्रीका तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में शुतुरमुर्गो के अनेक प्रजनन फार्म 

होते हैं। क्रूरतापूर्ण शिकार से उनकी संख्या घटकर बहुत कम रह गई है, 

तथा अरब जैसे कुछ क्षेत्रों में वे पूर्ण रूप से समाप्त हो चुके हैं।



2. रीआ (Rhea)


इसकी 2 जातियाँ दक्षिण अमरीका के मैदानों या पैम्पस की निवासी हैं : 

सामान्य या बृहत्तर रीआ अमेरिकाना (Rhea americana), तथा डार्विन का 

अथवा लघुत्तर टेरोनीमिआ पेनेटा (Pterocnemia pennata)। वे 

वास्तविक या प्राचीन संसार के शुतुरमु‌र्गों या स्ट्रथियो (Sruthio) से छोटे होते 

हैं परन्तु उनका स्वभाव विल्कुर समान होता है। रीआओं के प्रत्येक पैर में 3 

पंजेदार अँगूठे होते हैं। आद्यांगी पंख वास्तविक शुतुरमुर्ग की अपेक्षा अधिक 

विकसित होते हैं। इसके स्पष्ट पुच्छ-पिच्छ नहीं होते, तथा अफ़्रीकी शुतुरमुर्ग 

की तरह भड़कीले पिच्छ भी नहीं होते हैं। इसका सिर और गरदन परों से 

ढके होते हैं, शुतुरमुर्ग की भाँति नंगे नहीं होते। रीआ नहाने के बहुत शौक़ीन 

होते हैं और तैरने के भी योग्य होते हैं। नर बहुसंगमनी होते हैं। यद्यपि पिच्छ 

शुतुरमुर्ग की अपेक्षा निम्न कोटि के होते हैं, तथापि उनका उपयोग पिच्छ-

झाड़नों के निर्माण में किया जाता है।




3. एमू (Emu)


शुतुरमुर्ग के बाद, एयू या होपेक्स नोवीहाँलेंडी (Dromalus 

novaehollandiae) सर्वाधिक बड़ा जीवित पक्षी है जो आस्ट्रेलिया के रेतीले 

मैदानों या खुले बड़ा में रहता है। इसकी ऊँचाई 1-8 मीटर एवं भार 55 किया 

होता है। एमू का शारीरिक गठन शुतरमुर्ग की अपेक्षा अधिक कुश होता है। 

परन्तु इसकी गरदन अपेक्षाकृत छोटी और प्रत्येक पार्श्व मैं केवल एक नौले 

धब्बे को छोड़कर परों से बैंकों होती है। शरीर बादामी या हल्की भूरी 

पश्क्षति से आच्छादित होता है और दोनों लिगों का रंग समान होता है। नर 

की पुच्छ में बड़े सजावटी पिच्छ नहीं होते। पिच्छों में लम्बे अनुपिच्छ 

(aftershafts) होते हैं जो लगभग कांडों (shafts) के बराबर होते हैं जिससे 

प्रत्येक पिच्छ दोहरा दिखाई देता है। यूरोपाइजियल मन्धि नहीं होती एवं नर 

में एक आकुंचनशील शिश्न होता है। श्वासनली से एक छिद्र द्वारा सम्बन्धित 

एक अनोखा श्वास-कोष्ठ होता है, जो केवल वयस्कों में पूर्णतया विकसित 

होता है। शुतुरमुर्ग की भाँति यह अपने लम्बे, शक्तिशाली एवं 3 पादांगुष्ठ-

युक्त पैर द्वारा खतरनाक लात मार सकता है। यह फलों, बीजों, जड़ों और 

शाकों को खाता है। यह नहाना और तैरना पसन्द करता है। एमू निश्चित रूप 

से एकसंगमनी (monogamous) होते हैं, यद्यपि प्रजनन के बाद छोटे-छोटे 

दलों में दिखाई देते हैं। घोंसला जमीन में खोदा गया घास एवं पत्तियों द्वारा 

आस्तरित उथला गड्‌ढा होता है। अंडों का सेना तथा बच्चों की देखभाल नर 

करता है। नव-अंडजोत्पन्न शिशु आकर्षक रूप से अनुदैर्ध्य धारीयुक्त होते 

हैं। यह लक्षण परिपक्वता पर लुप्त हो जाता है। एमू की पिच्छ-संलग्न त्वचा से 

प्रायः कम्बल और चटाइयाँ बनाई जाती हैं। पक्षी की वसा स्नेहक (lubricant) 

की भाँति प्रयोग की जाती है। सुन्दर, कणयुक्त, गहरे हरे अंडों से प्रायः 

कलात्मक आभूषण निर्मित किये जाते हैं। माँस साधारणतया खाने में अच्छा 

होता है। कंगारू द्वीप का एमू ड्रोमेइस माइनर (Dromaius minor) अब 

विलुप्त हो चुका है।




4. कैसोवरी (Cassowary)


3 जातियों द्वारा निरूपित संसार के तीसरे सर्वाधिक बड़े पक्षी कैसावरी 

ऑस्ट्रेलिया, न्यूगिनी और समीपस्थ द्वीपों के घने वनों में रहते हैं। दो 

माँसपालियों वाले (two-wattled) ऑस्ट्रेलियन कैसोवरी या कैसुएरियस 

कैसुएरियस (Casuarius casuarius) की ऊँचाई 1 मीटर और भार 85 किग्रा 

होता है। दो अन्य स्पीशीज़, एक माँसपालियुक्त कैसोवरी या कै. 

अनअपेन्डिकुलेटस (C. unappendiculatus) तथा लघु कैसोवरी या कै. 

बेनेंटी (C. bennetti), होती हैं। सभी स्पीशीज़ शर्मीली, वनवासी, रात्रिचर 

और बहुत कम दिखाई देती हैं। वयस्क काले रंग के होते हैं जबकि शिशु भूरे 

होते हैं। अग्रपाद या पंख बहुत छोटे


और कोहनी पर मुड़े होते हैं। प्रत्येक पैर में 3 पंजेदार अँगूठे होते हैं। भीतरी 

पादांगुष्ठ पर बड़ा कीलनुमा नख्खर एक खतरनाक पिच्छों (barbs) 

पुच्छपिच्छ पहचानने में नहीं आते। अनुपिच्छ (aftershaft) मुख्य कांड के 

बराबर लम्बा होता है। कैसीवरी अपने हमवतन एमू से सिर पर एक श्रृंगी 

शिरख्खाण (helmet) या कलगी (crest) द्वारा विभेदित होता है। यह सिर की 

रक्षा करता है जब कैसोवरी सिर झुकाकर झाड़ि‌यों के बीच से होकर 

झपटता है। सिर और गरदन की त्वचा चमकीली आभायुक्त होती है। 

कैसोवरी झगड़ालू और बदमिज़ाज होते हैं और बूढ़े नर सताये जाने पर 

मनुष्यों पर भी आक्रमण कर सकते हैं। मूल निवासी कभी-कभी उनके बच्चों 

को पकड़कर पालते हैं। ऐसे पालतू पक्षी बहुत सौम्य और स्नेही हो जाते हैं। 

इनका माँस बहुत स्वादिष्ट माना जाता है।




5. कीवी (Kiwi)


न्यूजीलैंड के ऐष्टेरिक्स (Apteryx) को प्रायः उसके माओरी नाम "कीवी" से 

अधिक जाना जाता है। यह जीवित उड़ानहीन चिड़ियों में सबसे छोटी और 

लगभग बड़ी घरेलू मुर्गी जितनी (55 सेमी) बड़ी होती है। यह रक्ताभ या 

धूसराभ भूरे रंग की होती है। इसके पर मोटे बाल-समान होते हैं। टाँग पीछे 

की ओर स्थित, छोटी पर शक्तिशाली, सामने तीन अँगूठों और पीछे पादांगुष्ठ 

(hallux) सहित दृढ़ पंजों वाली होती हैं। चोंच लम्बी, संकीर्ण, नीचे को थोड़ी 

वक्र और फौलाद की कटार की भाँति तेज़ होती है। एक असाधारण 

विशेषता नासारंधों की स्थिति चोंच के सिरे के निकट होती है। उनके पंख 

आद्यांगी होते हैं और पुच्छ-पिच्छों का अभाव होता है। सिर और नेत्र 

अपेक्षाकृत छोटे होते हैं। उनमें गंध की तीव्र संवेदना होती है जो चिड़ियों में 

अद्वितीय होती है। कीवी रात्रिचर और स्वभाव से बिलकारी होती हैं। वे दिन 

का समय भूमिगत छिद्र में सोकर व्यतीत करती हैं परन्तु रात्रि के समय 

भोजन की खोज में निकलती है जिसमें कूमि और कीट सम्मिलित होते हैं। 

यह बड़े-बड़े कदमों द्वारा द्रुत गति से दौड़ती हैं। मादा नर से बड़ी होती है। 

शरीर के आकार के अनुपात में कीवी किसी भी ज्ञात जन्तु की अपेक्षा बड़ा 

अंडा देती है। विशाल अंडे का भार माता-पिता के भार के लगभग चौथाई के 

बराबर (450 ग्राम) होता है। न्यूज़ीलैंड के माओरी लोग कीवी के भुने या 

उबले माँस के बहुत शौकीन होते हैं और उनके मुखिया कीवी के परों को 

आभूषण के रूप में प्रयोग करते हैं। उनकी विध्वंस से रक्षा के लिये 

न्यूज़ीलैंड की सरकार ने कुछ शरणस्थल (sanctuaries) छोड़ दिये हैं जहाँ 

कीवी बिना छेड़छाड़ के निर्भय रह सकती हैं।




6. टिर्नमाड (Tinamou)


टिनैमाउस की लगभग 150 जातियों दक्षिण अमरीका के जंगलों तथा घास के 

मैदानों (savannah) में पाई जाती हैं। आकार में गिनी-फाउल जैसी होने के 

कारण उन्हें पहले गण गैलीफ़ॉमर्मीज़ के अन्तर्गत रखा जाता था। शरीर की 

लम्बाई 20 से 53 सेमी तक और भार 450 से 2300 ग्राम तक, स्पीशीज़ के 

अनुसार होता है। ये भूरे या धूसर रंग के पक्षी, बहुधा धारीदार या चितकबरे 

होते हैं। पंख और पुच्छ छोटे होते हैं। ये उड़ने में सक्षम है किन्तु ज़मीन पर 

ही रहते हैं और बहुत ही कम उड़ते हैं। ये मुख्यतया वनस्पति पदार्थ, जैस 

छोटे फल, बीज, सरसफल (berries), पत्तियाँ, पुष्प, जड़े इत्यादि खाते हैं 

तथा कौट, कृमि और मोलस्क जैसे अकशेरुकियों का भी आहार करते हैं। ये 

शर्मीले और एकान्तप्रिय होते हैं, केवल संगम-ऋतु में एक साथ इकट्ठे होते हैं।

नर बहुसंगमनी तथा मादा बहुपतिका होती है। मादा ज़मीन पर बने घोंसले 

में अंडे देती है और नर उन्हें सेता है। ललित कलगीधारी टिनैमाउ (elegant 

crested tinamou) अर्थात् यूडोमिआ एलिगेन्स (Eudromia elegans) के सिर 

पर लम्बे परों को कलगी होती है।




पक्षियों की बंधुतायें


Affinities of Birds

सरीसृपीय उत्पत्ति (Reptilian descent): आम तौर पर यह विश्वास किया 

जाता है कि पक्षियों की उत्पत्ति किसी पूर्वज सरीसृपीय प्रभव (reptilian 

stock) से हुई है। प्रथम दृष्टिपात से यह एक अस्वाभाविक विचार प्रतीत होता 

है। यद्यपि प्रत्येक पक्षी और प्रत्येक रेप्टाइल में बड़े अन्तर होते हैं तथापि वे 

अपनी संरचना और परिवर्धन में आश्चर्यजनक समानता प्रदर्शित करते हैं। न 

केवल इन दोनों वर्गों में अनेक समान लक्षण होते हैं, अपितु, ऑर्किओप्टेरिक्स 

(Archaeopteryx) जैसे कुछ विलक्षण जीवाश्म वास्तव में दोनों समूहों को 

एक कड़ी की भाँति जोड़ते हैं। इसने टी. एच. हक्सले (T. H. Huxley) को 

दोनों वर्गों (रेप्टीलिया और एवीज़) को कशेरुकियों के सॉरोप्सिडा 

(Sauropsida) नामक एक विभाग में रखने को प्रेरित किया, यद्यपि इस 

व्यवस्था को सामान्यतया स्वीकार नहीं किया गया है।


पक्षियों की सरीसृपीय पूर्वजता या उत्पत्ति या सरीसृपीय बंधुता का त्रिगुण 

(three-fold) प्रमाण उनकी तुलनात्मक शारीर (anatomy), श्रौणिकी 

(embryology) और जीवाश्मिकी (palaeontology) द्वारा प्रदान किया जाता 

है।


 


शारीरीय या संरचनात्मक प्रमाण


Anatomical or morphological evidence


 1. बाहह्य-कंकाल (Exoskeleton): सभी पक्षियों के श्रृंगी, अधिचर्मीय 

शल्क (scales) होते हैं जो उनकी टाँगों के निचले भागों और

 पैरों तक सीमित होते हैं और जो बिल्कुल सरीसृपों के 

अधिचर्मीय शल्कों के समान होते हैं। इसका भी प्रमाण है कि पक्षियों के 

शल्क सरीसृप-शल्कों की भाँति गिराचे और प्रतिस्थापित किये जाते हैं। 

इसके अतिरिक्त, पक्षी पिवों (feathers) द्वारा आच्छादित होते हैं जो 

सरीसृपीय श्रृंगी शल्कों के समजात होते हैं क्योंकि उनकी उत्पत्ति समान 

होती है और वे समान जनन कलिकाओं (germ buds) में विकसित होते हैं। 

पश्चियों की चोंच (beak) का श्रृंगी आच्छद, चंचु आवरण या रैम्फ्रोथीका 

(rhamphotheca), भी सरीम्पीय शल्कों का तुलनीय है। ऐल्बेट्रॉस 

(albatross) और समुद्रकाक (potrel) में यह श्रृंगी आच्छद सरीसृपीय जबड़ों 

के शल्की की भाँति पृथक् खड़ों का बना होता है। पफ़िन्स (puffins) में इस 

श्रृंगी आच्छद का वार्षिक पातन (shedding) सरीसृपों में शल्कीय आवरण के 

निर्मोचन (moulting) का तुलनीय है। कूर्मों और कछुओं में पक्षियों की भाँति 

श्रृंगी व दंतहीन चोंचे होती हैं। दूसरी ओर, किशोर टिनैमाऊ (tinamou) की 

चोंच में कुछ आद्य पक्षियों और सरीसृपों में पाये जाने वाले दाँतों के समान 

संरचनायें होती हैं। श्रृंगी पंजे (claws) नियमित रूप से पक्षियों के पादांगुष्ठों 

पर पाये जाते हैं। उनकी मूल संरचना पक्षियों, सरीसृपों और स्तनधारियों में 

समान होती है।


2. अन्त: कंकाल (Endoskeleton) पक्षियों के अन्तः कंकाल में सरीसृपीय 

लक्षण प्रचुर रूप से स्पष्ट होता है और अनेक प्रकार से प्रदर्शित होता है। 

दोनों समूहों में, करोटि भली-भाँति अस्थिभूत, डाइऐप्सिड (diapsid) और 

एक- अस्थिकंदीय (monocondylic), अर्थात् बेसि-ऑक्सिपिटल से विकसित 

एकल ऑक्सिपिटल कॉडाइल द्वारा कशेरुकदंड से संधित होती है। जबड़ों 

की स्वनिलम्बी निलम्बिका (autostylic suspensorium) एक नेहाई-रूपी 

क्वाड्रेट अस्थि की सहायता से पाई जाती है। सर्पों और पादहीन छिपकलियों 

को छोड़कर एक अन्तरानेत्रकोटर पट (inter-orbital septum) पाया जाता 

है। निचला जबड़ा दोनों ओर 5 या 6 अस्थियों का बना होता है। मैडिबल 

करोटि में ऊपरी जबड़े की क्वाड्रेट अस्थि से संधि करता है। स्तनधारियों की 

भाँति कशेरुकाओं के बीच में स्थित अधिप्रवर्ध (epiphyses) अनुपस्थित होते 

हैं। किशोर पक्षियों में स्वतंत्र मैव पर्शुकायें (cervical ribs) होती हैं, जो 

वयस्क में मैव कशेरुकाओं के कशेरु-कायों (centra) में संलीन हो जाती हैं। 

वक्षीय पर्शकाओं द्वारा एक पूर्ण वक्षीय टोकरी (thoracic basket) बनती है

जो मध्य-अधर रेखा में उरोस्थि से मिलती है। मगरों और स्फ़ीनोडॉन की 

कशेरुकीय पर्शकाओं पर अंकुशी प्रवर्ध (uncinate processes) पाये जाते हैं। 

पक्षियों में अंस और श्रोणि-मेखलायें केवल सरीसृपीय उद्भव का आभास देती 

हैं। पक्षियों में भलि-भाँति विकसित एकल कोराकॉइड (coracoid) अस्थि 

होती है परन्तु सरीसृपों में यह वास्ततिक कोराकॉइड तथा औकोराकॉइड में 

विभाजित होती है। गुल्फ संधि (ankle joint) अन्तरागुल्फीय (intertarsal) 

होती है. अर्थात टॉर्सल अस्थियों की समीपस्थ और दूरस्थ पंक्तियों के बीच में 

स्थित होती है। दोनों के पादांगुष्ठ नखरयुक्त होते हैं तथा उनमें अंगुलास्थियों 

की संख्या एक जैसी (2, 3, 4, 5) होती है।


3. आहारनाल (Alimentary canal): पक्षियों की भाँति मगरों में गिजर्ड 

(gizzard) होता है और वे पाचन में सहायता करने के लिये स्वभावतः पत्थर 

निगलते हैं। मलाशय की समाप्ति एक विस्तृत त्रिभागी (tripartite) अवस्कर 

में होती है जो काँप्रोडियम, यूरोडियम और प्रॉक्टोडियम में बंटा होता है। 

अंधनाल (caccum) पाया जाता है।


4. श्वसन तंत्र (Respiratory system): पक्षी और सरीसृप जीवनपर्यन्त 

फेफड़ों द्वारा श्वसन करते हैं और क्लोमों (gills) से कभी नहीं करते। वायु-

कोष, जो पक्षियों की परम विशेषता होते हैं, छिपकलियों में गिरगिट या 

कैमीलिऑन (Chamaeleon) में भी पाये जाते हैं। श्वासनाल वलय (tracheal 

rings) पूर्ण होते हैं।


5. परिसंचरण तंत्र (Circulatory system): मगरों और पक्षियों के हृदय 

और धमनियाँ निकट-तुल्य होती हैं। मगरों का हृदय पक्षियों की भाँति 

पूर्णतया 4-कक्षीय होता है। दोनों दैहिक चापें (systemic arches) विपरीत 

पाश्र्वों को परिगमन करती हैं लेकिन, मगरों की बायीं चाप दायीं की अपेक्षा 

बहुत छोटी होती है और उसके निर्लोपन या उन्मूलन (suppression) का 

परिणाम पक्षियों में पाई जाने वाली व्यवस्था होगी, जिनमें केवल दायीं चाप 

पाई जाती है। दोनों में रुधिर भी समान होता है और लाल रुधिर कणिकायें 

केन्द्रकयुक्त होती हैं।


6. तंत्रिका तंत्र (Nervous system): नव-प्रवार (neopallium) चिकना होता 

है। अनुमस्तिष्क (cerebellum) एक मध्य पिंडक वर्मिस (vermis) तथा दो 

पार्श्व पिंडकों (lateral flocculi) में विभाजित होता है। कपाल तंत्रिकायें 12 

जोड़ी होती हैं।


7. संवेदी अंग (sense organs): बाह्य-कर्ण या कर्ण पल्लव (pinna) 

अनुपस्थित होता है। परन्तु अनेक पश्चियों और मगरों के कर्ण कुहर 

(auditory meatus) में उसके बाहरी किनारे से एक कपाटीय पल्ला निकला 

रहता है। एक छड़-समान कर्णास्थि या स्तम्भिका (columella) कर्णपटह को 

आन्तरिक कर्ण से जोड़ती है। कर्णावर्त या कॉक्लिआ (cochlea) कुंडलित 

नहीं होता । अनेक पक्षियों और कुछ विलुप्त सरीसृपों के नेत्र के सामने रेखा


के भाग में नन्हीं अस्थि प्लेटों याः तथाकथित दुपटली अस्थिकाओं (sclerotic 

pasicles) का एक वलय होता है। ये पक्षियों में उनके सरीसृपीय पूर्वजों की 

बपौती (legacy) का एक भाग है। पक्षियों और कुछ सरीसृ‌पों में, एक विशेष 

कंधे जैसा पेक्टेन (pecton) अंधबिन्दु के क्षेत्र से नेत्र के काचर- कक्ष 

(vitreous chamber) में प्रक्षिप्त होता है।


8. जनन-मूत्र तंत्र (Urino-genital system) वयस्क वृक्क पश्चवृक्कीय 

(metanephric) होते हैं और यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं, अर्थात, 

यूरिकाम्ल उत्सर्गी (urecotelic) होते हैं। मध्यवृक्क (mesonephric) 

वाहिनियों शुक्र वाहि- काओं (vasa efferentia) का कार्य करती हैं। मलाशय, 

मूत्र और जनन वाहिनियाँ एक अवस्कर में खुलती हैं। जनद उदर में होते हैं। 

सर्पों में अनेक पक्षियों की भाँति मूत्राशय नहीं होता। रैटाइट्स और बत्तखों में 

एक प्रवेशी अंग या शिश्न होता है।


 


भ्रौणिकीय प्रमाण


Embryological evidence

एक दूसरी प्रमाण रेखा, कि पक्षी एक सरीसृपीय पूर्वज से उत्पन्न हुए हैं, 

उनकी भ्रौणिकी या परिवर्धन के सामान्य लक्षणों में पायी जाती है। निषेचन 

आन्तरिक होता है जिसके पूर्व मैथुन होता है। दोनों अंडज (oviparous) होते 

हैं, अर्थात, अंडे देते हैं। दोनों समान प्रकार के अंडे देते हैं जो जल के बाहर 

निक्षेपित किये जाते हैं। अंडे बड़े और गोलार्धपीतकी (telolecithal) होते हैं 

क्योंकि अंडाणु के अक्रिय ध्रुव पर बड़ी मात्रा में पीतक होता है, जबकि 

उसके सक्रिय ध्रुव पर अपने केन्द्रक-सहित कोशिकाद्रव्यो जनन बिम्ब 

(cytoplasmic germinal disc) तैरती है। अंडाणु श्वेतक (albumen), एक 

अंडकला (egg membrane) और एक कैल्सियमी कवच (calcareous shell) 

द्वारा घिरा होता है जो अंडवाहिनी की भित्ति में स्थित विशेष ग्रन्थियों द्वारा 

स्त्रावित होते हैं। विदलन अंशभंजी (meroblastic) और चक्रिकाभ 

(discoidal) होता है। कन्दुकन (gastrulation) तथा मध्यजनस्तर 

(mesoderm) का निर्माण समान होता है। भ्रूण बाह्यकलायें या गर्भ (foetal) 

कलायें, अर्थात ऐम्निअन, कोरिअन और ऐलेन्टॉइस, पाई जाती हैं। सूक्ष्म 

क्लोम छिद्र, जो मछलियों के संगत होते हैं, भ्रूणीय सरीसृपों और पक्षियों की 

ग्रीवा के पाश्वों में पाये जाते हैं, परन्तु वयस्क में तिरोहित हो जाते हैं। नवजात 

शिशु में एक छोटा सा भ्रूण दंत (egg tooth) मुख या चोंच के सिरे पर होता है 

जो कवच तोड़कर बाहर निकलने में सहायता करता है।




जीवाश्मीय प्रमाण


Palaeontological evidence

पक्षियों की सरीसृपीय पूर्वज परम्परा के प्रमाणस्वरूप तृतीय जीवाश्मकी से 

खींची गई है। दुर्भाग्यवश, जीवाश्म-पक्षी अधिक संख्या में प्राप्त नहीं होते हैं, 

क्योंकि वृक्षवासी जीवन और कोमल कंकाल होने से उनको जीवाश्मीभूत 

एवं संरक्षित होने के केवल दुर्लभ अवसर प्राप्त होते हैं।



आर्किओप्टेरिक्स : सर्वाधिक पुरातन जीवाश्म-पक्षी 

(Archaeopteryx: The Oldest Fossil Bird)


1. खोज (Discovery)


जीवाश्मी लेखे (fossil record) में सर्वाधिक आरम्भिक ज्ञात पक्षी 

आर्किओप्टेरिक्स लिचोप्रैफ्रिका (Archaeopteryx lithographica) है जिसका 

अर्थ "प्राचीन पंख" (ancient wing) होता है। इसकी तिथि पूर्व पश्च-जुरैसिक 

कल्प है। इसकी खोज लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व बावेरिया (जर्मनी) के 

लैंगेनैलथीम (Langenaltheim) में एक स्लेट की खान में 1861 में एन्ड्रियास 

वैग्नर (Andreas Wagner) ने की थी। एक दूसरा कंकाल 1877 में और 

तीसरा 1956 में उसी स्थान से खोजा गया था।


आर्किओप्टेरिक्स कौवे के आकार का, और एक प्रारूपिक डाइनोसॉर की 

भाँति लम्बी शुंडाकार पुच्छ सहित, कदाचित एक स्थलीय पक्षी था। इस आद्य 

पक्षी को सरीसृपों और पक्षियों के बीच एक संयोजक कड़ी (connecting 

link) या संक्रमणीय अवस्था समझा जाता है क्योंकि इसमें सरीसृपीय और 

पक्षीय, दोनों प्रकार के लक्षण होते हैं।


2. आर्किओप्टेरिक्स के सरीसृप-समान लक्षण 

(Reptilian characters of Archaeopteryx) 


शारीरिक अंगों की संरचना में आर्किओप्टेरिक्स महत्वपूर्ण सरीसृपीय बंधुताएँ 

प्रदर्शित करता है :


(1) शरीर और भुजाओं पर शल्क (scales) होते हैं।


(2) अस्थियाँ वातिल (pneumatic) नहीं होतीं।


(3) मज़बूत जबड़ों के गर्तों में स्थित खूँटी-समान गर्तदंती (thecodont) तथा 

समदन्ती (homodont) दाँत होते हैं।


(4) लगभग 20 स्वतंत्र पुच्छ-कशेरुकाओं की बनी, लम्बी, शुण्डा- कार, 

छिपकली-समान पुच्छ होती है। पुच्छफाल (pygo- style) नहीं होता।


(5) मैव कशेरुकायें किसी अन्य पक्षी की अपेक्षा कम (9 या 10) होती हैं। 

धड़ या सेक्रल कशेरुकाओं में कोई संगलन (fusion) नहीं होता।


(6) स्क्रीनोडॉन (Sphenodon) की भाँति कशेरुकाओं के कशेरुकाय 

उभयगर्ती (amphicoelous) होते हैं।


(7) वक्षीय पर्शकाएँ एकल-शीर्षी तथा अंकुशी प्रवर्ध हीन होती हैं।

 स्फ़ीनोडॉन और मगरों की भाँति स्वतंत्र मैव और उदरीय पर्शुकायें 

भी होती हैं।


(8) उरोस्थि कम विकसित और नौतल-रहित ।


(9) प्रत्येक हाथ में 3 स्वतंत्र पंजेदार अंगुलियाँ होती हैं। अंगुलास्थियों की 

संख्या प्रारूपिक सरीसृपीय, अर्थात प्रथम, द्वितीय और तृतीय अंगुलियों में 

क्रमशः 2, 3, और 4' होती है।


(10) कॉर्पल्स और मेटाकॉर्पल्स स्वतंत्र होती हैं। कोई संगलित

कापोंमेटाकॉर्पस (carpometacarpus) नहीं होता। (11) श्रोणि-मेखला में एक 

दीर्घित इलियम और एक पीछे को दिष्ट प्यूबिस अस्थियाँ होती हैं, जो पृथक् 

होती हैं।


(12) बेलनाकार प्रमस्तिष्क गोलार्द्धं और अप्रसारित अनुमस्तिष्क सहित 

मस्तिष्क सरल प्रकार का था।




3. आर्किओप्टेरिक्स के पक्षी-समान लक्षण 

(Avian cha- racters of Archaeopteryx) : 


पिच्छों की अत्रुटिपूर्ण छाप के अभाव में आर्किओप्टेरिक्स का वर्गीकरण एक 

रेप्टाइल की भाँति हुआ होता। परन्तु, इसका वास्तविक पक्षी-समान स्वभाव, 

निस्संदेह, निम्नलिखित लक्षणों द्वारा दृष्टिगोचर होता है :


(1) भली-भाँति विकसित देह-पिच्छों और उड्डयन-पिच्छों का शारीरिक 

आवरण ।


(2) पक्ष-पिच्छों (remigos) और तीन अंगुलियों सहित प्रत्येक अमपाद उड़ने 

के लिये पंखों में रूपान्तरित।


(3) दुम पर दो पार्श्व पंक्तियों में व्यवस्थित दीर्षित पुच्छ-पिच्छ (rectrices) 

होते हैं।


(4) करोटि आनुपातिक रूप से बड़ी, एककंदी (monocon- dylic), एक बड़े 

गोल मस्तिष्क कोश, बड़े नेत्रकोटरों और अस्थियों के धनिष्ठ संगलन सहित 

होती है।


(5) दोनों जबड़े दीर्षित होकर चोंच बनाते हैं।


(6) मेखलाओं और पादों की अस्थियाँ प्रमुख रूप से पक्षियों जैसी होती हैं। 

स्कैपुला अस्थियों दीर्घित औरवक्र होती हैं।


(7) दोनों क्लैविकल्स संगलित होकर एक V-रूपी विशाख या फरकुला 

(furcula) अस्थि बनाती हैं।


(8) टिबिया और फिबुला पृथक् होती हैं।


(9) पैर एक टारसो-मेटाटॉर्सस (tarso-metatarsus) द्वारा निर्मित होता है। 

इसमें क्रमशः 2, 3, 4 और 5 अंगु- लास्थियों वाले 4 पादांगुष्ठ जुड़े होते हैं। 

प्रथम पादांगुष्ठ (hallux) पश्च-दिष्ट और सम्मुखीय (opposable) होता है।


(10) नेत्रों में दृढ़पटली अस्थिकायें (sclerotic ossicles) होती हैं।




4. आर्किओप्टेरिक्स का महत्व 

(Significance of Archaeopteryx)  


यह रेप्टाइल्स और पक्षी, दोनों के लक्षणों को प्रदर्शित करता था। वास्तव में, 

यह सरीसृप था या पक्षी,


इस पर कुछ विवाद रहा है। यद्यपि यह निश्चय ही आधुनिक गठन वाला पक्षी 

नहीं था, तथापि यह वास्तविक सरीसूप भी नहीं था। पिच्छों के अपवाद 

सहित, इसमें आर्कोसॉरियन (archosaurian) सरीसूपों के साथ सामान्य 

समानता थी। सम्भवतया यह आधुनिक पक्षियों का प्रत्यक्ष या निकटस्थ पूर्वज 

नहीं था। उसी प्रकार इसके निकटस्थ वंशजों का भी कुछ पता नहीं है। 

पश्चकालिक प्ररूपों से यह वातिलता (pneumacity) के अभाव, अषपादों की 

सरीसृपी योजना और दीर्षित पुच्छ के कारण बिलकुल भिन्न था। क्रिटेशस 

(Cretaceous) कल्प के पक्षी, जैसे हैस्पेरोर्निस (Hesperornis) और 

इक्थिओर्निस (Ichthyornis), स्पष्ट रुप से पक्षी थे, यद्यपि उनके दाँत आद्य 

सरीसूर्पों के समान थे। इस कारण, जीवित अथवा विलुप्त, सभी प्रकार के 

पक्षियों से भिन्न इसकी स्पष्ट विशेषताओं के कारण ही जीवाश्मीय 

आर्किओप्टेरिक्स को एक पृथक् उपवर्ग आर्किओर्निथीज़ (Archaeornithes) 

में वर्गीकृत किया गया है, जबकि शेष सभी आधुनिक पक्षियों को उपवर्ग 

निओर्निथीज़ (Neornithes) में रखा जाता है।



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