पक्षियों का अभिगमन या प्रवास, Migration of Birds
पक्षियों का अभिगमन या प्रवास
Migration of Birds
पक्षियों के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं में से सर्वाधिक चमत्कारिक अनेक
जातियों का मौसमी या ऋतु प्रवास (Seasonal migration) और उनकी
संचालन (navigation) की विलक्षण क्षमता है। इसने अनेक शताब्दियों
तक मनुष्य जाति को जिज्ञासित किया है। जब-जब यायावर पक्षियों के झुंडों
ने आकाश को अन्धकारपूर्ण बनाया है, तब-तब मनुष्य विस्मयपूर्वक
आकाश को निहारता रहा है। स्थानान्तरण या प्रवास अनेक प्रकार के जन्तु
करते हैं, परन्तु पक्षियों की भाँति इतनी दूर और इतनी नियमितता से कोई
नहीं करता है।
पक्षी सोते हुए क्यों नहीं गिरते
प्रवास की परिभाषा
Definition of migration
व्यापक अर्थ में "प्रवास" जैसा कि काहन (Cahn) ने परिभाषित किया है,
"जन्तुओं का एक स्थान से दूसरे स्थान को नियतकालिक भ्रमण है" ( यात्रा
करना) अन्य जन्तुओं में प्रवास का अर्थ है उनका प्रकीर्णन (dispersal) या
आप्रवासन (immigration), जिसमें वापसी यात्रा या अप्रत्यावर्तन का न होना
निहित होता है। दूसरी ओर पक्षी-प्रवसन एक द्विपथ-यात्रा (two-way
journey) होती है। इसका अर्थ पक्षियों की कुछ जनसंख्या द्वारा अपने
ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन गृहों, अथवा जनन और नीड़न स्थलों से
आहार और विश्राम स्थलों के मध्य इधर-उधर नियमित व नियतकालिक
भ्रमण करना है।
पक्षी-प्रवासन संबंधी प्रारम्भिक विचार
Earlier views about bird migration
पक्षी-प्रवासन के संबंध में भूतकाल में लोगों में विभिन्न प्रकार के मत, कभी-
कभी अत्यन्त भ्रांतिपूर्ण, प्रचलित थे। अरस्तु (Aristotle) का विचार था कि
कुछ पक्षी, जैसे सारस, प्रवास करते हैं। अन्य पक्षी जैसे स्टॉर्क, टर्टिल डव
और लॉर्क, प्रवास नहीं करते बल्कि छिप जाते हैं। जबकि कुछ का रूपान्तर
(transmigration) हो जाता है, जैसे ग्रीष्मकाल में यूरोप की रॉबिन बदलकर
रेडस्टार्ट बन जाती है। अविवेकी मध्ययुग (Middle Ages) में कुछ प्रकृति-
विज्ञों का यह मानना था कि नन्हें पक्षी अपने बड़े साथियों की पीठ पर सवार
होकर समुद्रों को पार करते थे। पक्षी-प्रवासन के प्रति सर्वाधिक बेतुकी
परिकल्पना एक अंग्रेज व्यक्ति द्वारा प्रगट की गई थी। उसका यह दावा था
कि पक्षी उड़कर लगभग (1) दिनों में चन्द्रमा पर पहुँचते हैं, और पृथ्वी पर
वापस लौटने पर, भोजन के अभाव में, वे शीतनिद्रा (hibernation) में चले
जाते हैं। लिनीयस (Linnaeus) भी विश्वास करता था कि सामान्य हाउस
मार्टिन जाड़ों में पानी में डूब जाती है, लेकिन गर्मियों में पुनः बाहर निकल
आती है। लिनीयस के ही महान समकालीन, सीबॉर्न के गिल्बर्ट व्हॉइट
(Gilbert White of Sciborne), का विश्वास था कि अबाबील कीचड़ में
शीतनिद्रा के लिए चले जाते हैं।
प्रवासी और अप्रवासी पक्षी
(Migratory and resident birds)
एक वर्ग के रूप में पक्षी महानतम प्रवासी होते हैं। परन्तु पक्षियों की सभी
जातियाँ प्रवास की महान यात्रा में भाग नहीं लेती हैं। ऐसा अनुमान है कि
पक्षियों की कुल जातियों की लगभग एक-तिहाई मौसम-परिवर्तन के साथ
एक क्षेत्र से दूसरे में न्यूनाधिक प्रवास या स्थानान्तरण करती हैं। लेकिन
अन्य, जैसे बॉबव्हाइट (bobwhite) और उत्कुंचित भाटतीतर (ruffed sand
grouse), बिल्कुल प्रवास नहीं करते । ऐसे अप्रवासी या स्थानबद्ध पक्षी, जो
किसी भी प्रदेश में वर्ष-पर्यन्त रहते हैं, स्थानिक या निवासी (resident) पक्षी
कहलाते हैं। प्रवास नहीं करने वाले अप्रवासी पक्षियों तथा अपनी सावधिक
यात्राओं में हज़ारों मील तय करने वाले प्रवासी पश्तियों के मध्य प्रत्येक श्रेणी
या क्रम पाया जा सकता है। परन्तु कुछ पक्षियों की गतियों की कोई निश्चित
दिशा नहीं होती, अतः इन्हें विपथगमन अथवा खानाबदोशी (nomadism)
कहा जाता है।
प्रवास का अध्ययन Study of migration
पश्चियों में प्रवास का अध्ययन अनेकों प्रकार से किया जाता है। प्रवास का
प्रत्यक्ष प्रेक्षण (direct observation) सर्वा धिक सामान्य विधि है, जिसका
प्रयोग प्रवासी पक्षियों की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में किया जाता है। प्रेक्षक
गुजरने वाली अथवा विश्राम के लिए रुकने वाली जातियों की मात्रा और
गुणता का, तथा उनकी गतियों की दिशा और जलवायु की दशाओं के प्रति
उनके व्यवहार का, विश्लेषण करते हैं। कुछ प्रेक्षक दूरबीन या टेलीस्कोप
और रेडार का प्रयोग करते हैं, या फिर वायुयानों द्वारा प्रवासी झुंडों का पीछा
करते हैं।
प्रवासों के अध्ययन की एक महत्त्वपूर्ण विधि वलयन या पट्टाभन
(banding) है। इसका वैज्ञानिक आधार पर प्रयोग सर्वप्रथम 1899 में
डेनमार्क के पक्षि-विज्ञानी एच. सी. सी. मार्टेन्सन (H.C.C. Martensen) ने
किया था। उसने जस्ते के छल्लों से, जिन पर वलयन का वर्ष और स्थान
अंकित थे, 164 सामान्य स्टारलिंग या स्टर्नस वल्गेरिस
को पट्टाभित किया था। तब से, अन्टार्कटिका समेत सभी महाद्विपों में प्रति
वर्ष लाखों पक्षियों को वलयित या पट्टा- भित करके प्रवासी पक्षियों की
यात्राओं को अंकित किया जाता है। पक्षियों को पकड़ने के लिए अनेक
साधनों का प्रयोग किया जाता है। सम्पूर्ण वैज्ञानिक जगत् में आजकल हल्के
ऐलुमीनियम के बने छल्लों का प्रयोग होता है। प्रवासी पक्षी से लगे छल्ले पर
एक क्रमसंख्या और कार्यरत संस्थान का अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संक्षिप्त
नाम दिया होता है। एक रजिस्टर में प्रत्येक क्रमसंख्या के साथ वलयित पक्षी
का नाम, वलयन की तिथि व स्थान, पक्षी की परिवर्धनीय अवस्था जैसे,
नीड़शावक, अव्यस्क अथवा प्रौढ़), लिंग, स्वास्थ्य की दशा, निर्मोचन
(moulting), परिमाण, भार, आदि लिखे जाते हैं। जब कभी ये वलयित पक्षी
पकड़े जाते हैं, ये पक्षी की आयु, उसकी गतियाँ, तय की गई दूरी, इत्यादि के
संबंध में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आँकड़े प्रदान करते हैं।
वलयन एक गंभीर वैज्ञानिक प्रक्रिया (operation) है। अतः इसे केवल ऐसे
व्यक्तियों द्वारा करना चाहिए जो पकड़े जाने वाले पक्षियों के बारे में सभी
महत्त्वपूर्ण जानकारी को इकट्ठा कर उसका विश्लेषण करने के लिए पूरी
तरह प्रशिक्षित होते हैं।
प्रवास के प्रकार Kinds of migration
पक्षियों में प्रवास अनेक प्रकार से होता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
अक्षांशीय प्रवास
पंखों के उपहार के कारण ही पक्षी सुविधापूर्वक पृथ्वी के दो भिन्न भागों का
दोहन करते हैं। सर्वाधिक परिचित प्रवास अक्षांशीय होते हैं, अर्थात्, उत्तर से
दक्षिण अथवा दक्षिण से उत्तर। ये अपेक्षाकृत विशाल भूक्षेत्रों वाले उत्तरी
गोलार्द्ध में अधिक स्पष्ट होते हैं। ग्रीष्मकाल में पक्षी उत्तरी गोलार्द्ध के
शीतोष्ण और उप-ध्रुवीय क्षेत्रों में प्रवास करते हैं, जहाँ खाने और घोंसला
बनाने की सुविधायें होती हैं। शीतकाल में जब उत्तर बर्फ़ और हिम से हैका
रहता है, तब पक्षी आश्रय के लिये वापस दक्षिण को लौट जाते हैं। अनेकों
उत्तर अमेरिकी और यूरेशियन पक्षी विषु- वत रेखा को पार कर जाड़ा
गुज़ारने के लिये दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के अधिक निचले और
अपेक्षाकृत गर्म भागों में चले जाते हैं। अमेरिका की बटान या सुनहरी
टिटिहरी (golden plover) या प्लूविएलिस डोमोनिका
शीत के नौ महीने 8000 मील दक्षिण में अर्जेन्टाइना के पैम्पस में व्यतीत
करती है, इस प्रकार प्रति वर्ष दो ग्रीष्मों का आनन्द लेते हुए शीत का
लेशमात्र भी नहीं जानती। साइबेरिया के कुछ पक्षी भारत में हिमालय के
मैदानों की यात्रा करते हैं।
देशान्तरीय प्रवास
कुछ पक्षी अक्षांशीय के स्थान पर देशान्तरीय प्रवास करते हैं, अर्थात् पूर्व से
पश्चिम की ओर अथवा विपरीत दिशा की ओर। उदाहरणतः तिलियर
(starling) पूर्व यूरोप या एशिया में अपने जनन क्षेत्र से महाद्वीपीय शीत से
बचने को अटलांटिक तट की ओर चली जाती है।
तुंग प्रवास
जहाँ कहीं शीतोष्ण क्षेत्रों में बड़े पर्वत होते हैं, ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ
पक्षी उनके ढालों पर ऊपर-नीचे नियमित रूप से प्रवास करते हैं। पक्षी
ग्रीष्म पर्वतीय क्षेत्रों में व्यतीत करते हैं, परन्तु शीत में निचले क्षेत्रों को लौट
जाते हैं। यह ठंडे ढालों से अधिक सुरक्षित घाटियों को प्रकीर्णन या छोटी
यात्रा मात्र है, और तुंगीय या उर्ध्वाधर प्रवास (altitudinal or vertical
migration) कहलाता है। यह अर्जेन्टाइना में एन्डीज़ पर्वतों पर पनडुब्बियों
(grebes) और कारण्डवों (coots), ग्रेट ब्रिटेन की बैंगनी हरी अबाबीलों और
साइबेरिया की विलो टारमिगैन (willow ptarmigan) में पाया जाता है।
टारमिगैन की भूरी पच्छति शीत में सफ़ेद रंग की हो जाती है तथा आहार
कीटों के बजाय आल्डर की पत्तियों और विलो का हो जाता है।
आंशिक प्रवास
कभी-कभी, एक ही जाति की कुछ जनसंख्या प्रवास करती है और बाकी
नहीं। इस प्रकार शीतोष्ण प्रदेशों की अनेक जातियाँ केवल आंशिक प्रवासी
होती हैं। स्थायी निवासियों में, जो बिल्कुल प्रवास नहीं करते, उसी जाति के
नये सदस्यों के आगमन से थोड़े काल तक वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार,
कनाडा और उत्तरी संयुक्त राष्ट्र के बार्न आउल या टाइटो एल्बा (Tyto
alba), नीलमी (blue birds) और अनेकों ब्लू जे (blue jays), दक्षिणी राज्यों
की स्थानबद्ध समष्टि में मिल. जाने के लिये दक्षिण की यात्रा करते हैं। सोंग
श्रस (song-thrush), रेड बेस्ट (red breast), टिटमाउस (titmouse) और
फिंच (finch) आदि, जो वर्ष-पर्यन्त दिखाई पड़ते हैं, वास्तव में आंशिक
प्रवासियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, क्योंकि शीत में दिखाई देने वाले सदस्य
वही नहीं होते जो ग्रीष्म में दिखाई देते हैं।
अनियमित या जंगम प्रवास
कुछ पक्षियों जैसे बगुलों में, जनन के पश्चात् व्यस्क और तरुण, भोजन की
खोज और शत्रुओं से सुरक्षा पाने के लिये, अपने घर से भटककर कुछ या
सैकड़ों मीलों तक सब दिशाओं में फैल जाते हैं। कक्कू, थ्रस और वार्बलर
जैसे कुछ कमज़ोर स्थलीय पक्षी, अधिक ऊँचाइयों पर जेट धाराओं (jet
streams) नामक प्रचण्ड व शक्तिशाली हवाओं में फँस जाते हैं, जो भूमण्डल
पर पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती हैं। कभी-कभी समुद्री पक्षी ऐसे तूफानों
द्वारा अपने गृह सागरों से 2000 मील दूर तक चले जाते हैं और अपरिचित
तटों पर थक या मर कर गिर पड़ते हैं।
ऋतु प्रवास
शीतोष्ण देशों के फ़ील्ड प्रेक्षकों ने प्रवासी पक्षियों को ऋतुओं के अनुसार
समूह-बद्ध किया है। इस प्रकार, ब्रिटेन में बतासी (swifts), अबाबील
(swallows), बुलबुल (nightingales) और कोकिल (cuckoos) ग्रीष्म
आगन्तुक (summer visitors) हैं, क्योंकि वे बसन्त में दक्षिण से आते हैं,
जनन करते हैं, और पतझड़ में पुनः दक्षिण को उड़ जाते हैं। कुछ पक्षी जैसे
फ़ील्ड फेयर (fieldfare), स्नो बन्टिंग (snow bunting) और रैडविंग
(redwing), शीत आगन्तुक (winter visitors) हैं, क्योंकि वे पतझड़ में
मुख्यतया उत्तर से आते हैं, शीत-पर्यन्त रुकते हैं और बसन्त में फिर उत्तर
की ओर उड़ जाते हैं। जबकि कुछ, जैसे चाहे (snipes) और जलरंग
(sandpipers), मार्ग के पक्षी (birds of passage) कहलाते हैं। वे वर्ष में दो
बार, बंसत और पतझड़ में, अधिक ठंडे या अधिक गर्म देशों को जाते समय
दिखाई पड़ते हैं।
निर्मोक प्रवास
प्रवासी पक्षी प्रवास यात्रा के आरम्भ में प्रायः निर्मोचन (moulting) करते हैं,
जिससे उनकी पच्छति सर्वोत्तम आकार में बनी रहे। निर्मोचन प्रवासों के
अन्तर्गत् पक्षी उपयुक्त क्षेत्रों में पहुँचकर अपने परों को बदल डालते हैं। इस
प्रकार के निर्मोक प्रवास बत्तख़ों की अनेक जातियों, यूरेशियन शेलडक तथा
वुड सेंडपाइपर आदि में पाये जाते हैं। जल-मुर्गाबी (Anatidae) में निर्मोचन
तुरन्त एवं सम्पूर्ण रूप से होता है।
प्रवास में उड्डयन के कुछ पहलू या विधियाँ
नैश और दिवा उड्यन
(Nocturnal and diurnal flight) :
पक्षियों की कुछ जातियाँ दिन के समय, तथा कुछ रात्रि के समय प्रवास
करना पसंद करती हैं। जबकि बत्तख़, गंगाचिलियाँ (gulls), तटीय पक्षी व
अनेकों दूसरे रात्रि और दिन, दोनों समय प्रवास कर सकते हैं।
अनेक बड़े पक्षी, जैसे कौवे, अबाबील, रॉबिन्स, कस्तूरी (black birds), बाज़,
नीलमी (blue birds), जेज़ (jays), सारस, लून्स (loons) पेलिकन्स, राजहंस
व अन्य तटीय पक्षी मुख्यतया दिन के समय उड़ते हैं। वे उचित स्थानों पर
चुगने को रुक सकते हैं, परन्तु अबाबीलें और बतासियाँ वायु में उड़ते समय
ही अपने भोजन कीटों को पकड़ लेती हैं। दिवा प्रवासियों (diurnal
migrants) में दलों में उड़ने की अधिक प्रवृत्ति होती है। झुन्ड भली-भाँति
संगठित हो सकते हैं (बत्तख़, राजहंस, और हंस), या अल्प संगठित
(अबाबील) परन्तु पक्षियों का विशाल बहुमत मुख्यतया नैश प्रवागी
(nocturnal migrants) होता है। इनमें अधिकतर छोटी पैसरी चिड़ियाँ; जैसे
फुदकियाँ (warblers), शरालियों (thrushes) और गौरैयाँ, आदि होती हैं।
शत्रुओं से बच निकलने के लिये, वे रात्रि में अंधकार के सुरक्षा-आवरण में
उड़ना पसन्द करती हैं।
प्रवास काल में पृथक्करण
कतिपय पक्षी जैसे नैश बाज़ (night hawks), बतासियाँ (swifts) और
मीनरंक (king-fishers), पृथक् टोलियों में यात्रा करते हैं, जबकि अबाबील,
पौरु (turkeys), नीलमी (blue birds) आदि अनेक जातियाँ अपने आकार
और भोजन खोजने की विधि में समानता के कारण मिश्रित टोलियों में यात्रा
करती हैं। कुछ जातियों में नर और मादा सदस्य पृथक् पृथक् यात्रा करते हैं।
नर घोंसले बनाने को पहले पहुँचते हैं। तरुण सदस्य सामान्यतया मादाओं के
साथ रहते हैं।
प्रवास का परास
प्रवासी पक्षियों द्वारा तय की गई दूरी स्थानीय दशाओं और सम्बन्धित जाति
पर निर्भर होती है। इस कारण हम ठीक सुनिश्चित मार्गों पर चलने वाली
स्थानिक प्रवासी गतियाँ देखते हैं। हिमालयी हिम तीतर केवल कुछ सौ फीट
ही नीचे उतरते हैं और कठिनाई से एक या दो मील तय करते हैं, जबकि
चिकैड्स लगभग 8000 फीट नीचे उतरते हैं। तय की गई दूरियों के कारण
कुछ प्रवासी उड़ानें प्रख्यात हो चुकी हैं। लम्बी दूरी का चैम्पियन प्रवासी, या
प्रवासी पक्षियों का सम्राट, निश्चित रूप से आर्कटिक टर्न (arctic tern) या
स्टर्ना पैराडाइज़िआ है। यह उत्तर ध्रुवीय वृत्त के अन्दर लैब्रेडोर के दूर तक
फैले सर्वाधिक उत्तरी हिमयुक्त तटों पर ग्रीष्म बिताती और जनन करती है।
फिर यह शीत में अपने गंतव्य दक्षिणी ध्रुव के किनारों पर पहुँचने के लिए
11,000 मील की यात्रा करती है, और ग्रीष्म में उसी दूरी से पुनः लौटती है।
इस प्रकार यह अपेक्षाकृत छोटा, पर शक्तिशाली पंखों वाला पक्षी प्रति वर्ष
22,000 मील की यात्रा तय करता है।
लम्बी उड़ान से प्रतिष्ठित अन्य पक्षियों में गोल्डन प्लोवर्स
सैंडपाइपर्स, बॉबलिंक्स , व्हॉइट स्टॉक्स और अबाबील हैं, जो
आर्कटिक से लेकर दक्षिण अमेरिका में अर्जेन्टाइना के घास के पैम्पस
अथवा पैटागोनिया के सागर तटों तक 6,000 से 9,000 मील की दूरी तय
करते हैं। यूरोप का गबर या व्हॉइट स्टॉर्क (white stork) 8,000 मील की
यात्रा के पश्चात् दक्षिण अफ़्रीका में जाड़ा व्यतीत करता है।
गोल्डन प्लोवर बिना रुके सर्वाधिक लम्बी उड़ान का विश्व कीर्तिमान
बनाता है। यह उत्तरी अमेरिका म्की हडसन खाड़ी और अलास्का से दक्षिण
अमेरिका तक 2,400 मील (3,850 किमी) का फासला पूरा करता है। यद्यपि
यह अज़ोर्स द्वीपसमूह के ऊपर होकर प्रवास करता है, तथापि विश्राम के
लिए नहीं रुकता तथा 50 मील प्रति घंटा के औसत से पूरा मार्ग 48 घंटों में
तय करता है। इसी भाँति, लघु गोल्डन प्लोवर अलास्का से हवाइयन द्वीप
समूह तक बिना रुके 2175 मील (3,500 किमी) की दूरी तय करता है।
निसंदेह, इन लम्बी दूरियों को पार करने के लिए इन पक्षियों में असाधारण
बल होना चाहिये। शारीरिक क्षमता के इन ओलिम्पियन मानदण्डों वाले
पक्षियों की अपेक्षा पृथ्वी पर कोई अन्य प्राणो इतना ऐथ्लेटिक नहीं मिलता।ये
लम्बी दूरी के प्रवासी पक्षी अपने शरीर में ईंधन की तरह प्रयुक्त होने के लिए
विशाल मात्रा में वसा संचित करते हैं।
उड्डयन की ऊँचाई
कुछ पक्षी पृथ्वी के बिल्कुल निकट उड़ते हैं, जबकि अधिकतम नेमी
(routine) प्रवास पृथ्वी से 3,000 फीट के भीतर होता है। वैमानिकी का
अनुभव बताता है कि ज्यों-ज्यों अधिक ऊँचाई पर जाते हैं, कम घनी या
विरलित (rarefied) वायु होने से उत्प्लावकता (buoyancy) नष्ट होकर
संतुलन और गति बनाये रखने में कठिनाइयाँ बढ़ती जाती हैं। रेडार से ज्ञात
हुआ है कि रात्रि को प्रवास करने वाले कुछ छोटे पक्षी 5,000 से 14,000
फोट की ऊँचाई तक उड़ते हैं। कुछ जातियाँ तो ऐन्डीज़ और हिमालय पर्वत
श्रृंखलाओं को 20,000 फीट या अधिक ऊँचाई पर पार करती हैं।
उड्डयन की गति और अवधि
यह निश्चित रूप से ज्ञात है कि किसी अन्य अवसर की अपेक्षा प्रवास के
दौरान पक्षी अधिक तेज़ी से यात्रा करते हैं। अधिकतम छोटे पक्षियों का
औसतम उड्डयन वेग 300 मील प्रति घंटा से अधिक बिरले ही होता है,
जबकि अबाबील और स्टारलिंग अधिक वेग से उड़ते हैं। बाज़ 30-40 मील,
तटीय पक्षी 40-50 मील तथा बत्तख 50-60 मील प्रति घण्टा उड़ते हैं। ई. सी.
स्ट्यूअर्ट (E. C. Stuart) द्वारा भारत में रिकार्ड की गई अधिकतम चाल,
बतासियों (swifts) की 2 जातियों की, 171-200 मील प्रति घण्टा है। इन
चालों पर लगभग 500 मील के औसत से एक दिन या रात में बिना रुके
सैकड़ों मील तय किये जा सकते हैं। पक्षी प्रायः 5-6 घंटे प्रतिदिन यात्रा करते
हैं और बीच में भोजन या जल के लिये विश्राम करते हैं। प्रवास के दौरान,
मौसम की दशाओं के अनुसार, चाल में कुछ अन्तर हो सकता है। बारिश,
ओले और विपरीत चलने वाली तेज़ हवायें चाल में बहुत कमी कर देती है।
प्रवास की नियमितता
प्रवासी पक्षियों को अनेक जातियाँ, वर्ष-प्रतिवर्ष, अपने आगमन और प्रस्थान
के समयों में आश्चर्यजनक नियमितता प्रदर्शित करती हैं। यात्रा की लम्बी दूरी
और मौसम की अनिश्चितताओं के होते हुए भी वे प्रायः केवल 1 या 2 दिनों के
अन्तर से अपने पहुँचने के समय की पाबन्द होती हैं। अपने सही आगमन के
समय पर पहुँचने वाले पक्षी बहुधा सहजवृति या नैसर्गिक प्रवासी (instinct
migrants) कहलाते हैं। उनको मौसम प्रभावित नहीं कर पाता है। अनेक
वर्षों के प्रेक्षण द्वारा यह ज्ञात हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन
नगर में आगमन की तिथि वार्न स्वॉलो की लगभग 12 अप्रैल, हाउस रेन की
12 अप्रैल एवं चिपिंग स्पैरो की 22 अप्रैल है। समयपालकता (punctuality)
के अतिरिक्त एक अन्य उल्लेखनीय बात यह है कि वे कभी-कभी, वर्ष-प्रति-
वर्ष, उसी जनन-स्थल पर वापस लौट कर आती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं
रहता जब एक वलयित स्वॉलो (ringed swallow) अपने दक्षिण अफ्रीका के
शीतकालीन निवास से लौटकर हंगेरी के एक गाँव में स्थित घोंसले पर
लगातार 6 वर्षों तक पहुँचती पाई गई है। भारत के प्रसिद्ध पक्षि-विज्ञानी
सलीम अली (Dr. Salim Ali) के अनुसार ऐल्युमिनियम के छल्ले सहित
एक मे वैगटेल अनेकों वर्षों तक उनके बम्बई में स्थित बगीचे में लौटकर
आती थी।
प्रवास के मार्ग
प्रवास के उड्डयन पथों के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। प्रकाश
स्तम्भों और जलयानों द्वारा प्रदत्त आँकड़े प्रकट करते हैं कि पक्षी प्रायः
उड्डयन के निश्चित पथों का अनुसरण करते हैं। यद्यपि हम मार्गों या उड्डयन
की चर्चा करते हैं, लेकिन हिमाच्छित ध्रुवों के अतिरिक्त पृथ्वी पर शायद ही
कोई स्थानं बाकी बचा हो जिसके ऊपर होकर पक्षी नहीं उड़ते हैं। रेडारों
द्वारा निरीक्षण प्रदर्शित करते हैं कि छोटे स्थलीय पक्षियों का नैश प्रवास एक
विस्तृत मोर्चे पर सामान्य वायु प्रवाह के संग चलता है। बसन्त में यह दक्षिण
से गर्म वायु तरंगों के साथ उत्तर दिशा में होता है, और पतझड़ में उत्तर की
ठंडी हवाओं के साथ दक्षिण दिशा में होता है। रात्रि के समय प्रवास करने
वाले पक्षी झुंडों में तथा तंग मार्गों पर नहीं उड़ते। लेकिन दिन निकलते ही, वे
प्रायः झुंड बनाकर निश्चित उड्डयन पथों का अनुसरण करने लगते हैं। उड्डयन
पथ में विचलन भूमि के संरुपण (configuration), तट-रेखा, बड़ी नदियों के
मार्गों या बीच में पड़ने वाली पर्वत श्रृंखलाओं, आदि के कारण होता है।
प्रवासी पक्षियों में मर्त्यता
प्रवास एक पक्षी के जीवन में खतरों से भरा सर्वाधिक साहसपूर्ण कार्य है।
प्रवास के समय, वे असंख्य ख़तरे उठाकर भारी संख्या में मृत्यु को प्राप्त होते
हैं। सामान्य धारणा के विपरीत, पक्षियों के अन्दर मौसम की पूर्व सूचना देने
वाला कोई तंत्र नहीं पाया जाता है। पथ-विहीन सागरों पर उड़ान भरते समय,
कुछ पक्षी अपने मार्ग से भटक जाते हैं, विशेषकर प्रचण्ड तूफ़ानी मौसम में,
जब शक्तिशाली हवायें उन्हें अपने साथ ले जाती हैं। घबराहट और थकान के
कारण वे समुद्र में गिरकर डूब जाते हैं। धुंधली रातों में, कोहरे से
गड़बड़ाकर वे प्रकाश-स्तम्भों, स्मारकों, विशाल इमारतों, टेलीविजन टावरों
तथा हवाई अड्डों की सीलोमीटर किरण-पुंजों के प्रकाश से आकर्षित होकर
उनसे टकरा जाते हैं। इन मानव-निर्मित ख़तरों की अपेक्षा प्राकृतिक
विपत्तियाँ कहीं अधिक संख्या में उनका विनाश करती हैं। ठंडे मौसम,
बर्फीले तूफ़ानों, झंझावातों और भोजन के अभाव में वे करोड़ों की संख्या में
मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उनके शत्रु, जैसे बाज़ और मनुष्य, भी उनका भारी
संख्या में संहार करते हैं।
प्रवास की समस्यायें
Problems of migration
प्रागैतिहासिक काल से ही, जब से मनुष्य ने पक्षियों की उड़ानों का
अवलोकन करना और उनके पतझड़ में अन्तर्धान होने और बसन्त में पुनः
प्रकट होने के विषय में विचारना आरम्भ किया, तभी से प्रवास की जटिल
समस्याओं ने उसे भ्रमित किया है। इस अत्यन्त जिज्ञासापूर्ण रहस्य से अनेक
समस्यायें जुड़ी रहीं, जैसे :
(1) प्रवासी पक्षी अपना मार्ग कैसे तय करते हैं?
(2) प्रवास का मूल कारण क्या है?
(3) प्रवास का आरम्भ करने वाला उद्दीपन क्या है?
(4) प्रवास का उद्देश्य या लाभ क्या है?
(5) अनेक जातियों की लम्बी उड़ाने किस प्रकार प्रतिपालित (sustained)
होती हैं?
इन समस्याओं में से अनेक को आधुनिक वैज्ञानिकों ने हल किया है।
मार्ग-खोजना या नौसंचालन
प्रवास का सर्वाधिक आश्चर्यजनक पक्ष है "पक्षी कैसे नौसंचालन करते या
मार्ग खोजते हैं?" आज भी यह जन्तु-व्यवहार की एक रहस्यभरी और अपूर्ण
रूप से हल समस्या बनी हुई है। निश्चित रूप से पक्षी जानते हैं कि वे कहाँ
जा रहे हैं। इसे गृहगमन (homing) की संबंधित समस्या से, जो प्रवास से
भिन्न है, कदापि नहीं गड़बड़ाना (confuse) चाहिये। अनेकों पक्षि-विदों के
लिये प्रवासी उड़ानों के समय दिग्विन्यास (orientation) गहन अध्ययन का
विषय रहा है। प्रवास की दिशा और मार्ग किस प्रकार निर्धारित होते हैं,
इसके प्रवास नौयात्रा या मार्ग-निर्देशन के विविध स्पष्टीकरण या सिद्धान्त
प्रस्तुत किए गये हैं।
द्श्य भू-विन्ह Visual landmarks
दिशा के इन को प्रत्यक्ष स्थलाकृतिक लक्षणों (topographical features) या
भू-विन्हों (landmarks); जैसे बड़ी नदियों, नदी यारियो, तटीय रेखाओं,
महासागरीय द्वीपों की श्रृंखलाओं, पर्वत श्रेणियों आदि से जोड़ा जाता है।
चूँकि पक्षी-प्रवास के अनेक पथ उनका अनुसरण करते हैं, अतः यह माना
जाता है कि दृश्य भू-चिन्नों का पक्षियों द्वारा उपयोग किया जाता है। इससे
स्पष्ट होता है कि यूरोप का व्हॉइट स्टॉर्क या रॉस की गूज़ उत्तरी अमेरिका के
मैदानों में दक्षिणावर्ती यात्रा करते समय क्यों अचानक पेट फॉल (Great fall)
के निकट पश्चिम की ओर मुड़ कर रॉकी पर्वतों को पार कर जाते हैं। परन्तु
पक्षियों की बहुसंख्या रात्र को प्रवास करती है जब वे सरलता से भू-चिन्हों का
उपयोग नहीं कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विस्तृत सागरों को पार करने
वाले पक्षियों को भी अनुसरण करने के लिये कोई सागर-चिन्ह नहीं होते हैं।
अनुभव Experience
कुछ प्रकृति-वैज्ञानिकों का मत है कि पक्षी अनुभव से सीखते हैं। गत अनेक
वर्षों से एक ही मार्ग का अनुसरण करने की परम्परा से लाभान्वित कुछ
अधिक प्रौढ़ सदस्य अग्रणी बन कर छोटी पीढ़ियों का मार्ग-दर्शन करते हैं।
किन्तु पक्षी निश्चित रूप से बड़ों से अपना मार्ग नहीं सीखते हैं, क्योंकि उनमें
से कुछ टोलियों में नहीं उड़ते हैं। अनेक मामलों में किशोर पक्षी वयस्क
माता-पिता के मार्गदर्शन के बिना, अपनी प्रथम यात्रा स्वतंत्र रूप से करते हैं।
स्पष्टतया, उनका मार्ग दर्शन किसी प्रकार असंख्य पीढ़ियों से उनके तंत्रिका
तंत्र पर अंकित सहज-बुद्धि (instinct) द्वारा होता रहा है। इसके अलावा, यह
समझना भी कठिन है कि दृष्टि के बगैर अनुभव कैसे प्राप्त हो सकता है जो
अंधकार में सम्भव नहीं है।
पार्थिव या स्थलमण्डलीय धारायें
कुछ विद्वानों ने पार्थिव धाराओं के प्रभाव का वर्णन किया है। विडयन
(soaring) पक्षी ऊपरी धाराओं की सहायता से प्रवास करते हैं। लेकिन, जब
तक कि हवा उपद्रवी या झोंकेदार न हो, वह पक्षी को उड़ा या धकेल नहीं
सकती। निश्चय ही पक्षियों को सीधे उनके गंतव्य तक निर्देशित करने वाली
वायु-धारायें बहुत कृपालु और अत्यन्त कुशल होनी चाहिये ।
अभिगृह वृति
कुछ विद्वानों ने चीटियों, मधुमक्खियों और वाहक कबूतरों की भाँति, पक्षियों
को लक्ष्य तक सीटने में सहायक गृहगामी या अधिगृह वृति का उल्लेख किया
है। परन्तु, वाहक कबूतरों के साथ अभिगृह प्रयोगों ने नौसंचालन में दृष्टि के
महत्त्व को सिद्ध किया है। डा. ग्रिफिन ने गैनेट्स (gannets) नामक समुद्री
पक्षियों को उनके तटीय घोंसलों से 100 या अधिक मील की दूरी पर किसी
अनजान प्रदेश में लेजाकर छोड़ा और उनके वापस लौटने का वायुयान द्वारा
अनुसरण किया। छोड़े गये पक्षी सीधे घर की ओर नहीं उड़े, बल्कि उत्तरोत्तर
बढ़ते वृत्तों में विशाल क्षेत्रों पर होकर उड़ने लगे। फिर अपने परिचित क्षेत्र
को देखकर सीधे घर की ओर उड़ चले।
पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र
कुछ कार्यकर्ताओं, जैसे वॉन मिडेनड्रॉफ़ और हेनरी एल. यीग्लीव, ने यह
विचार प्रस्तुत किया है कि पक्षी पृथ्वी के बुम्बकीय क्षेत्र के प्रति अनुक्रिया
द्वारा नौसंचालन करते हैं और उनका आन्तरिक कर्ण पृथ्वी के घूर्णन
(rotation) द्वारा उत्पन्न यांत्रिक कोरिऑलिस प्रभाव (Coriolis effect) से
प्रतिक्रिया करता है। परन्तु पक्षियों में चुम्बकीय या किसी अन्य गोपनीय
दिशा ज्ञान का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है।
इन कठिनाइयों के होते हुए भी यह विश्वास बना रहा कि पक्षी अपरिमित
मात्रा में किसी गूढ़ एवं यथार्थ दिशा-ज्ञान का उपयोग अवश्य करते हैं, जो
उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक, लगभग एक सीधी रेखा में, उड़ने के
योग्य बनाता है, यद्यपि कोहरा या अंधकार उन सभी चिन्हों को ढक देता है
जिनसे उनका मार्गदर्शन सम्भव होता है।
खगोलीय पिंड
यह प्रमाण अधिकाधिक बल पकड़ रहा है कि अपनी यात्रा के मुख्य दिशा
निर्देश के लिये पक्षी खगोलीय पिंडों का सहारा लेते हैं। जर्मन पक्षि-विज्ञानी
स्वर्गीय गुस्ताव कैमर (Gustav Kramer) ने 1949 में दावा किया कि,
अविराम प्रवास की दशा में जो पक्षी दिन के समय यात्रा करते हैं, वे
दिक्विन्यास के लिये सूर्य का एक दिक्सूचक यंत्र (compass) के रूप में प्रयोग
करते हैं। बन्द पिंजरों में तिलियरों या स्टारलिंग्स (starlings) से प्रयोग करते
हुए, उसने यह सनसनीपूर्ण खोज की थी कि पक्षियों में एक आन्तरिक समय-
ज्ञान या सभय-घड़ी (time clock) होती है जिससे वे, जैसे-जैसे दिन चढ़ता है,
सूर्य के कोणों या स्थिति में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार अपने मार्ग में
आवश्यक समंजन कर लेते हैं। उसने दर्पणों का प्रयोग करके सूर्य को मिथ्या
आभासी दिशा प्रदान कर उड़ान की दिशा को परिवर्तित करके इसे सिद्ध
कर दिया। सूर्य की सहायता से नौसंचालन करते समय, शरद् या पतझड़ में,
दक्षिण की ओर उड़ता हुआ प्रवासी पक्षी प्रातः सूर्य को अपनी बाईं ओर,
दोपहर को सूर्य की सीध में, तथा अपरान्ह सूर्य को अपने दाईं ओर रखता है।
यही व्यवहार वॉन फ़िश (Von Fritsch) ने, 1949 में, मधुमक्खियों में पाया
था। यह सहजवृति, वंशागत होनी चाहिये क्योंकि तरुण पक्षी, जिन्होंने पहले
कभी प्रवास नहीं किया था, अपने माता-पिता से स्वतंत्र होकर यात्रा करते
समय, सूर्य से इसी प्रकार का नौसंचालनीय दिक्विन्यास कर लेते हैं।
एक अन्य तरुण जर्मन वैज्ञानिक, फ्रेंज़ सॉइर (Franz Sauer), जिसने रात्रि
को उड़ने वाली पुरानी दुनियाँ की फुदकियों या वार्बलर्स (warblers) से
प्रयोग किये, यह स्तब्धकारी खोज की कि रात्रि के प्रवासी पक्षी तारा-मंडलों
(constellations of stars) के द्वारा नौसंचालन करते हैं। उसने यह भी
प्रमाणित किया कि इन रात्रि के पक्षियों को, रात बीतने के साथ-साथ चलने
वाली तारामंडलों की गतियों के प्रतिकार के लिये अपने मार्ग में लगातार
संशोधन करना आवश्यक होता है। यह दर्शाने के लिये उसने पक्षियों के
पिंजरे को एक कृत्रिम ताराघर (planetarium) के भीतर रखा जिसके
खगोलीय गुम्बद को घुमाया जा सकता था। परन्तु यह निष्कर्ष, कि पक्षी दिन
में सूर्य और रात्रि में तारों द्वारा दिक्विन्यास करते हैं, गम्भीर सन्देहों का विषय
है। सभी पक्षी सुस्पष्ट निष्कर्ष प्रदान नहीं करते और अनेक सदस्य गलत
दिशा में भी चले जाते हैं। इन नकारात्मक परिणामों को घोषित नहीं किया
गया। इसके अलावा, पक्षियों को प्रभावित करने वाले सभी कारकों का ध्यान
नहीं रखा गया। अतः इन प्रयोगों का प्रवास की किसी थ्योरी के समर्थन में
उपयोग नहीं हो सकता है।
संक्षेप में, प्रवासी पक्षी अपना मार्ग किस प्रकार ज्ञात करते हैं, यह समस्या
अभी भी अनसुलझी रहती है। वे अपने लक्ष्य का ठीक निर्धारण किस प्रकार
करते हैं अभी तक एक अनबूझ रहस्य बना है। यह भी पता नहीं कि पक्षी के
शरीर में दिग्विन्यास तंत्र कहाँ अवस्थित हैं। वे केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में कदापि
नहीं हो सकते क्योंकि निम्न श्रेणी के जन्तु भी जिनमें केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र नहीं
होता, इसी प्रकार का दिग् विन्यास प्रदर्शित करते हैं। हम प्रवास के संबंध में
बहुत कुछ जान चुके है, परन्तु पूरी सच्चाई ज्ञात करने के लिए अभी अनेकों
प्रेक्षण एवं प्रयोग करने आवश्यक हैं।
प्रवास का उद्भव
Origin of migration
शुरू में प्रवास किसने आरम्भ किया? मूल अर्थात् दूरस्थ आरम्भिक कारण
अब तक बहुत अनुमान का विषय रहा है। पहले का "माता-पिता का
अनुसरण" का सिद्धान्त त्यागना पड़ा जब यह ज्ञात हुआ कि शरद् काल में
दक्षिणावर्ती यात्रा के समय नव पक्ष-युक्त किशोर पक्षी अपने माता-पिता से
आगे-आगे चलते हैं।
एक अन्य सिद्धान्त मानता है कि पक्षिों का मूल गृह उत्तरी गोलार्द्ध में था।
प्लीस्टोसीन (Pleistocene) कल्प के समय जलवायु सुहावना, ताड़ के वृक्षों-
सहित, एवं वातावरण पक्षियों के रहने के लिये अनुकूल था। परन्तु,
प्लीस्टोसीन के अन्तिम समय हिमाच्छादन (glaciation) हुआ जिससे उत्तरी
गोलार्द्ध बर्फ की चादरों से ढँक गया। बढ़ते हुए हिमनदों के साथ बढ़ती हुई
ठंड ने पक्षियों को दक्षिण की ओर जाने को बाध्य किया। परन्तु, जब हिमनद
पीछे हट गये और जलवायु भी कम कठोर हुआ, तब पक्षी वापस लौट आये।
आधुनिक प्रवास हिमयुग की घटना की संक्षिप्त पुनरावृति दर्शाता है। लेकिन
यह सिद्धान्त विश्व के उन भागों में होने वाले प्रवास का, जो कभी भी
हिमाच्छादन से प्रभावित नहीं रहे, स्पष्टीकरण देने में असमर्थ हैं।
एक अन्य सिद्धान्त मानता है कि पक्षियों का पैतृक निवास उत्तर के स्थान पर
दक्षिण में था और वे दक्षिण को घोंसला बनाने और जनन के लिये लौटते थे।
अब यह समझा जाता है कि प्रवास का उद्गम 10-20 लाख वर्ष पहले
प्लीस्टोसीन कल्प में नहीं हुआ था, बल्कि यह करोड़ों वर्ष पहले से निरन्तर
जारी है। पक्षि-विद् जीन डॉर्स्ट (Jean Dorst, 1970) प्रवास का उद्गम
टरशियरी कल्प (Tertiary period) में मानता है, जिस समय मौसमों के
एकान्तरण के फलस्वरूप पक्षियों में उसी प्रकार का संचालन हुआ होगा
जिस प्रकार आजकल प्रवास के समय होता है। फिर क्वार्टरनरी
(Quarternary) कल्प में, विशेषकर हिमाच्छादन काल में दे संचालन और
अधिक स्पष्ट हो गये हैं। सर्वाधिक विश्वसनीय सिद्धान्त प्रवास को एक
विकासीद प्रकिया के रूप में स्पष्ट करता है। भूतकाल में उष्णकटिबंधीय
पक्षी संभवतया अधिक ठंडे उत्तरी अक्षांशों में फैल गये थे जसे प्रचुर भोजन
उपलब्ध था। परन्तु जाड़ा आने पर वे दक्षिण को लौटने के लिये बाध्य हो गये।
प्रजाति के लम्बे इतिहास में यह घटना या घटनाओं का क्रम एक जन्म-जात
प्रचलन बर गया। पक्षी प्रवासन के अध्ययनरत एक अमणी, विलियम रोतंत्र
(William Rewan), के अनुसार वर्तमान समय के पश्तियों के संचलन या
प्रवास का सर्वोत्तम स्पष्टीकरण लामार्कवाद प्रदान करता है, कि अर्जित
लक्षण वंशागत हो सकते हैं।
कदाचित वातावरणीय और जलवायु सम्बंधी परिस्थितियों एवं आन्तरिक
शीरीर-क्रियात्मक दशाओं ने परस्पर मिलकर पक्षियों में प्रवसन या प्रवास
की परिघटना को जन्म दिया।
प्रवास के तात्कालिक कारण या उद्दीपन
(Stimulus or immediate causes for migration)
प्रवास की अन्तः प्रेरणा नैसर्गिक होती है और प्रवास के लिये उद्दीपन एक
गहन अनुसंधान का विषय रहा है। तात्कालिक कारण क्या है? क्या किसी
आन्तरिक घडी या बाह्य घड़ी जनित उद्दीपन होते हैं जो व्यक्तिगत रूप से
पक्षियों को प्रत्येक वर्ष लगभग उसी समय प्रवास के लिये प्रेरित करते हैं?
यह सम्भव है कि सदा ऐसे तात्कालिक कारण बन जाते हैं जो प्रवास की
सहज-वृत्ति को प्रेरित करते है; जैसे भोजन का अभाव, दिन के प्रकाश का
घटना और अधिकतम पक्षियों में, जो शरद् में प्रवास करते हैं, शोत की
उत्तरोत्तर वृद्धि का होना। विलियम रोवैन के अध्ययन के अनुसार दैनिक
दीप्तिकाल (photo-period) जनन ग्रन्थियों के परिवर्धन को प्रभावित करता
है। कुछ मामलों में प्रवास को बैरोमीटरी दबाव की आकस्मिक वृद्धि से
सम्बन्धित किया गया है। सामान्यतया, प्रवास लैंगिक चक्र का ही एक भाग
है। जैसे ही पक्षियों के जनद (gonads) फूलने आरम्भ होते हैं, वे उत्तर की
ओर उड़ना आरम्भ करते हैं। जब वे जनन स्थलों पर पहुँचते हैं, मन्थियाँ
सक्रिय होती हैं। प्रवासी जातियों के सदस्यों में, जो ग्रीष्म में अपने
शीतकालीन आवासों में ही रहते हैं, जनद दोषपूर्ण पाए गए हैं। लेकिन,
इसका यह अर्थ नहीं है कि लिंग-हारमोन्स प्रवास का कारण होते हैं। बसन्त
में प्रकाश की वृद्धि, या पतझड़ में उसकी कमी पीयूष ग्रंथि पर क्रिया करती
है। पीयूष ग्रन्थि जनदों को उद्दीप्त करती है जो फिर तंत्रिका तंत्र को प्रभावित
करके प्रवास की तीव्र इच्छा उत्पन्न करते हैं। अनेक जातियाँ प्रवास के पूर्व
बेचैनी दर्शाती हैं और अपने शरीर में और वसा का जमाव करती हैं। कौन
सा कारक वास्तविक उद्दीपन या विमोचन (trigger) है. यह अज्ञात है। प्रवास
की प्रेरणा किसी ऐसी अनजान चीज से मिलती है जो वार्षिक प्रजनन-चक्र
का भाग होती है। यह सभी जातियों में वही हो. यह आवश्यक नहीं और
इसमें सहज आवर्तन (innate rhythm) से सहायता मिलती है।
प्रवास का उद्देश्य या लाभ
Purpose or advantages of migration
प्रवासे के उद्देश्य या स्थूल लाभ प्रत्यक्ष और तर्क-संगत हैं।
(1) प्रवास पक्षियों को कठोर जलवायु की पराकष्ठाओं से बचने में सहायक
होता है। आर्कटिक प्रदेश जहाँ अनेक प्रवासी पक्षी प्रजनन करते हैं, गीष्म के
तीन महीनों के अलावा, पक्षियों के रहने के लिये बिल्कुल अनुपयुक्त है।
शीतकाल में अधिक उच्च तुंगताओं (altitudes) और ऊँचे अक्षांसों (उत्तर के
जनन स्थल) से प्रवास कर जाने से ठंड, तूफ़ानी मौसम, भोजन खोजने के
लिये उपलब्ध अपेक्षाकृत छोटे दिनों और भोजन की कमी से सुरक्षा मिल
जाती है।
(2) प्रवासियों को शीतोष्ण या उष्ण क्षेत्रों के अपने शीतकालीन आवासों में
अपने घरों की अपेक्षा अधिक भोजन और अधिक अच्छी दशायें मिल जाती
हैं, जो घरों में बने रहने का नहीं मिल पाती हैं।
(3) ग्रीष्म में उत्तर के जनन स्थलों को वापस लौट आने पर पुनः उपयुक्त
और अविजित घोंसले बनाने के स्थल, प्रचुर भोजन, और भोजन खोजने के
लिये प्रकाश के अधिक घन्टों वाले लम्बे दिन न्यूनतम प्रयत्नों से ऐसे समय
सहज मिलते हैं
जब उनकी संख्या बढ़ रही होती है।
इस प्रकार प्रवास के द्वारा पक्षी दोंनों गोलाद्धों की खाद्य-आपूर्ति का उपयोग
और घोंसले बनाने के लिये नये क्षेत्रों का दोहन उस समय तक करते हैं जब
तक परिस्थितियाँ उनके प्रतिकूल न हो जाएँ।
(4) किसी क्षेत्र विशेष के पक्षियों को नियमित अंतरालों पर बाहर प्रवास
करते रहने से वहाँ के परभक्षियों को भोजन लगातार मिल नहीं पाता है। इस
प्रकार, पक्षि-प्रवसन से परभक्षियों की जनसंख्या में बहुत वृद्धि नहीं हो पाती
है।
प्रवास काल में पोषण
Sustenance during migration
लम्बी दूरी के सभी प्रवासियों को बिना खाये या पिये कई सौ मील उड़ना
पड़ता है। अतः प्रवास करने से पूर्व पक्षी ऊर्जा का सुरक्षित भंडारण करता
है। यहाँ प्रवास से पूर्व जमा की हुई वसा का महत्व ज्ञात होता है। एक
भंडारण-उत्पाद के रूप में ग्लाइकोजन के ऊपर वसा का कार्यिकीय लाभ
है, क्योंकि वसा का प्रति इकाई भार अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह
उपापचय और श्वसन की उच्च दरों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये अधिक
जल भी उत्पन्न करती है क्योंकि प्रवासी उद्यान के समय फेफड़ों से अधिक
वाष्पीकरण होता है
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