पक्षियों का आर्थिक महत्व
पक्षियों का आर्थिक महत्व
भूमिका
Economic Importance of Birds
पक्षियों का प्राणि-जगत् में, विशेषतया मनुष्य के संबंध में, एक महत्वपूर्ण
स्थान है। आर्थिक रूप से से मनुष्य के प्रति लाभदायक व हानिकारक,
दोनों होते हैं लेकिन मनुष्य के लिए पक्षी लाभदायक ज्यादा होते है इसीलिए
हम बात करेंगे लाभदायक पक्षियों के बारे में |
गिद्ध के एक अंडे की कीमत 50 लाख रूपये
लाभदायक पक्षी
Beneficial birds
मनुष्यों के लिए पक्षियों के महत्वपूर्ण उपयोगों में से कुछ निम्न प्रकार है:
भोजन के रूप में
As food
पक्षियों का मांस और अंडे, दोनों भोजन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। आदि
मानव अपने भोजन और वस्त्रों के लिए जंगली पक्षियों का प्रयोग करता था।
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के प्रारम्भिक उपनिवेशकों ने विशाल संख्या में
जंगली बत्तखें, कलहंस, प्रेरी चिकन, कबूतर और तटीय पक्षियों का उपयोग
किया जो निरंतर संहार को बरदाश्त न कर सके। उनमें से कुछ विलुप्त हो
गये, और अनेकों की जनसंख्या बहुत कम हो गई। अब तक बीसियों
जातियाँ पृथ्वी के धरातल से अदृश्य हो चुकी हैं। डोडो (Rephus) और
सॉलिटेअर (Pezophaps) इनके चिर प्रतिष्ठित उदाहरण हैं। यह समझा जाता
है कि न्यूजीलैंड के मोआ (Dinornis) तथा आइसलैंड के पेट ऑक नामक
पक्षी 1860 तक जीवित थे। यात्री कपोत (Ectopistes), हीथ हेन (Heath
Hen) और कैरोलाइना पैराकीट नामक पक्षियों का अमेरिका में अभी हाल में
ही उन्मूलन हो चुका है।
पक्षियों के माँस व अंडों का भोजन के रूप में भारी मूल्य होता है, और
अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में ही उनका अरबों डालर मूल्य का उद्योग
स्थापित है। विश्व भर में हजारों शिकारी व्यक्ति बड़े उत्साह के साथ एवं भारी
खर्चा उठाकर, नाना प्रकार के आखेट पक्षियों, जैसे बत्तख, कलहंस,
फेजेन्ट्स, बटेर, इत्यादि का शिकार करते हैं। पक्षियों के अर्थशास्त्र का यह
पहलू बहुमूल्य वार्षिक राजस्व प्रदान करता है और अन्य बहुत सारे उद्योगों
को लाभ पहुँचाता है।
पक्षियों के माँस और अंडों की माँग ने लाभदायक मुर्गीपालन व्यवसाय को
जन्म दिया है। कुक्कुट (fowl) को एक स्वादिष्ट भोजन माना जाता है और
इसके अंडों को दूध के बाद, सर्वोत्तम मानक (standard) भोजन माना जाता
है। उनके अंडों का टॉफियों, पेस्ट्रियों, केकों, बिस्कुटों आदि में भी प्रयोग
किया जाता है।
मनुष्य ने अनेक प्रकार के पक्षियों को पालतू और संकरित किया है, कुछ को
तो अनेक शताब्दियों से किया है। कुक्कुटों, कबूतरों, पौरूओं (turkeys),
बत्तखों और कलहंसों की सैकड़ों किस्में, बेहतर परों, माँस और
सन्देशवाहकों आदि के लिये बनाई गई हैं। आजकल, किसान बन्दी स्थिति में
भारी संख्या में अनेक जातियों को उत्पन्न करते हैं, जिससे जंगली जातियों पर
पड़ने वाला बोझा बहुत कम हो जाता है। प्रदर्शनों में सर्वोत्तम प्रदर्शन करने
वालों को पुरस्कार दिये जाते हैं।
चीन में बतासियों (swifts) की एक विशेष जाति (वंश Collocalia) के घोंसले
खाये जाते हैं। ये घोंसले पूर्णतया पक्षियों की दृढ़ीभूत लार से बनाये जाते हैं।
निसंदेह, आधुनिक मानव के भोजन करने के स्वभाव और व्यवहार पर
पक्षियों ने गहरा प्रभाव डाला है।
मनुष्य के अतिरिक्त, कुछ अन्य जन्तु, जैसे सर्प, बिल्लियों, गंध-बिलाव
(civets), नेवले आदि भी अधिकतर छोटे पक्षियों और उनके अंडों का
शिकार करते हैं। प्रवास में बहुत विनाश होता है, जब पक्षी झुंडों में उड़ते हैं
और बहुत कम प्रयास से ही सरलतापूर्वक पकड़े या मारे जा सकते हैं।
उद्योग, कला और अलंकरण में
In industry, art and ornamentation
पक्षियों के पिच्छ या पर मनुष्य जाति के लिये एक महान वरदान रहे हैं।
उनका तकियों, रज़ाइयों, कम्बलों, कपड़ों और शयन थैलों के लिये बड़े
पैमाने पर उपयोग हुआ है। बत्तखों, और कलहंसो जैसे जलीय पक्षियों के
अध:पिच्छ (down feathers) सर्वाधिक उष्ण कुचालकता (insulation) प्रदान
करते हैं और ध्रुवीय परिधान, स्की पोशाक और अवशून्य (subzero) शयन-
थैलों के लिये अधिक प्रयुक्त होते हैं।
मनुष्य ने पक्षियों के चमकीले परों को सदैव बहुमूल्य समझा है। सुन्दर और
सुव्यक्त रंगों अथवा आकृति के पिच्छ मूल निवासियों और आधुनिक
महिलाओं के अनेक प्रकार के अलंकरण और सज्जा के काम आते हैं।
अमेरिका के मूल निवासी (Red Indians) सुनहरी बाजों के पंखों और पुच्छों
को समारोहों पर शिरोवस्त्रों (head dresses) तथा फ्लिकर और घाटी-बटेर
के परों को सजावट में प्रयोग करते हैं। पन्द्रहवीं सदी में जंगली पक्षियों का
महिलाओं की टोपियों को सजाने के लिये व्यापक रूप से प्रयोग होता था।
परन्तु, इस व्यापार से अनेक देशों में जंगली पक्षियों की अनेक जातियों के
लिये भीषण संकट पैदा हो गया। कलगीदार सारसों का एक समय फ़ैशन में
उनके परों की माँग के लिये भारी संख्या में विनाश किया गया था। अब
सजावटी पिच्छ पालतू कुक्कुटों, शुतुरमुर्गो और रीआज़ से प्राप्त होते हैं।
अनेक मूल निवासी पिच्छों को अपने बाणों पर लगाते हैं ताकि वे अधिक
आगे जा सकें। रीआज़ के पुच्छ-पिच्छ ब्राज़ील और अर्जेन्टाइना में पिच्छ
झाड़नों के रूप में प्रयुक्त होते हैं। मोर के पिच्छ अनेक प्रकार से प्रयोग किये
जाते है। लम्बे प्राथ (rachis) को बुनकर पंखों और खिलौने बनाये जाते हैं।
शुतुरमुर्ग के पिच्छ भी अनेक कलाओं और आभूषणों में लगाये जाते हैं।
पिच्छों से बैडमिटन की चिड़ियाँ या शटल कॉक्स बनाई जाती है।
मुद्रा के रूप में
As currency
दक्षिण प्रशान महासागर के सान्टा क्रूज़ द्विप में, नन्हीं मधुभोजी (honey-
cater) के सिंदूरी पिच्छों की पेटियों (belts) बुनी जाती हैं, जिन्हें मूल निवासी
मुद्रा के रूप में प्रयोग करते हैं। ऐसी दस पेटियों से एक दुल्हन तक खरीदी
जा सकती है।
उर्वरक के रूप में
As fertilizers
पक्षियों का मल पदार्थ या ग्वानो (guano), खाद के रूप में बहुत प्रयोग किया
गया है क्योंकि उसमें नाइट्रोजन, फ़ॉस्फेट्स, कैल्सियम और लोहा आदि
होते हैं। चिली (दक्षिणी अमेरिका) के तटवर्ती द्वीपों में, जहाँ बहुत कम वर्षा
होती है और जो खरबों प्रवासी और समुद्री-पक्षियों के जनन स्थल हैं, वहाँ
ग्वानो अत्यधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है जिसे खोदकर अन्य देशों को
निर्यात किया जाता है।
परागणकर्ताओं के रूप में
As pollinators
अनेक गुंजन पश्नी (humming birds), जो निकुंजों और घास-स्थलियों में
पुष्पों पर जीवन-यापन करते हैं, उनके परागण (pollination) में सहायता
करते हैं। फल-भोजी पक्षी फलों के बीजों के प्रकीर्णन में सहायता करते हैं।
जैव नियंत्रण में
In biological control
पक्षी कृषकों के अच्छे मित्र हैं क्योंकि वे हानिकारक फसल-नाशक जीवों का
जैव-नियंत्रण करते हैं। मश्क्षि-माही (fly catchers) और कठफोड़वा जैसे
कीटभक्षी पक्षी प्रतिवर्ष लाखों टन हानिकारक कीटों का भक्षण कर जाते हैं,
जबकि बीज-भोजी पक्षी इसी भाँति हज़ारों टन अनिष्टकारी खरपतवार-बीजों
को खाकर उपकार करते हैं। शिकारी पक्षी; जैसे बाज़, उक़ाब और उल्लू
अगणित हज़ारों कृन्तकों (rodents); जैसे खेतों के चूहों, शशकों, खरगोशों
और भूमि-गिलहरियों आदि, को मारकर खा जाते हैं, जो अन्यथा कृषि की
फसलों को चौपट कर दें।
परभक्षियों के रूप में
As predators
मोर, उकाब, चीलें उल्लू ,बाज़, और अन्य माँसाहारी पक्षी अनेक विषैले और
हानिकारक जीवों; जैसे कृमियों, कीटों, बिच्छुओं, मकड़ियों और सर्पों, आदि
के नाशक होते हैं।
अपमार्जकों के रूप में
As scavengers
सड़ा-गला माँस खाने वाले पक्षी, जैसे गिद्ध, बाज़, उक़ाब और कौवे बहुत
स्वच्छता-महत्व के होते हैं क्योंकि वे मृत शरीरों और सड़ने वाले जैव-पदार्थों
को खाते हैं। वे बीमारियों के प्रसार और अस्वास्थकर वातावरण को बनने से
रोकते हैं। कुछ पक्षी, जैसे दरियाई घोड़ों पर पशु-बगुले ,
वृषभ-कठफोड़े (oxpeckers), गैंडा-पक्षी (rhinoceros birds), अफ्रीकी
तिलीयर (African starlings), और भारत के मगर-पक्षी (crocodile birds),
इन जन्तुओं पर पाये जाने वाले परजीवियों का अपमार्जन करते हैं, और इन
भारी भरकम जानवरों की महत्वपूर्ण सेवा करते हैं।
औषधि के रूप में
In medicine
पक्षियों का मांस और पिच्छ अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक और यूनानी
औषधियों में प्रयोग किये जाते हैं। पक्षियों के शरीर गरम होते हैं और
इसलिये यूनानी पद्धति में उन्हें फेफड़ों के रोगों में छाती के सम्पर्क में रखने
की हिदायत है। कबूतर का मांस पक्षाघात (paralysis) के रोगियों के लिये
अच्छा कहा जाता हैं। मुर्गी का अंडा विविध औषधियों और टॉनिकों में
प्रयुक्त होता है। इसका बहुत प्रयोगात्मक महत्व है, क्योंकि इसे विषाणुओं,
जीवाणुओं, कवकों, गोलकृमि-डिम्भकों, आदि के संवर्धनों (cultures) के
माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है।
संदेशवाहकों के रूप में
As messengers
बहुत प्रारम्भिक दिनों से कबूतर युद्ध और प्रेमाचारों में सन्देशवाहकों के रूप
में प्रशिक्षित और प्रयुक्त हुए हैं।
संकेतों के रूप में
As signals
अनेक पक्षी ऋतुओं के परिवर्तन की सूचना देते हैं। भारत में कोयल का
प्रगट होना वसन्त के आगमन का संकेत करता है। बादलों से घिरे मौसम में
मोरों की विचित्र ध्वनि वर्षा की घोषणा करती है। इसके अतिरिक्त, कुछ पक्षी
भय-संकेत देकर शिकारियों की सहायता करते हैं। कुछ गौरैयों झाड़ी में
छिपे चीतों जैसे मांसाहारी जन्तुओं के सामने चिल्लाती हैं। सामान्य मार्ग-
गौरैयाँ नागराज (king kobra) के मार्ग के साथ-साथ चिल्लाती हैं।
मनोरंजन के लिये
For amusement
विश्व भर के लाखों शिकारी आखेट-पक्षियों के शिकार द्वारा मन बहलाव
करते हैं। यूरोप में शताब्दियों से बत्तखों, बटेरों, बगुलों, आदि को शिकार
(game) के रूप में पसन्द किया गया है। अनेक पक्षी सुन्दर गीत गाते हैं
जिन्हें सब सुनना पसन्द करते हैं। उनमें से अनेकों को उनकी गायक होने
की क्षमता के लिये पाला जाता है, जिसका एक ज्वलंत उदाहरण पीत चटकी
या कैनरी (canary) चिड़िया है। मनुष्य ने शताब्दियों से शुकों ,
मैनाओं, तोतों (parakeets) व अन्य अनेकों पक्षियों को उनकी पक्षति और
मनुष्यों के शब्दों को दोहराने की क्षमता के लिये पालतू (pets) जन्तुओं के
रूप में पिंजरों और पक्षिआलयों (aviaries) में रखा है। पिंजरा पक्षियों को
साधारणतया पालतू जन्तुओं की दुकानों में पाला जाता है। बजरीगर,
लवबर्ड्स, मुनिया और फिच जैसे अनेक जातियों के पक्षी खूब प्रजनन करते
हैं और बन्दी-दशा में अनेक पीढ़ियों तक जीवित बने रहते हैं। कबूतरों, मुर्गों
और तीतरों को खेल दिखाने के लिए पाला जाता है। कुछ पक्षियों जैसे शुकों,
बुलबुलों आदि को जनता में कुछ अजीब करतबों को दिखाने के
लिये तथा बाजीगर के लिये पैसा कमाने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है।
सौदर्यबोध-महत्व
Aesthetic value
सौंदर्य परकता की दृष्टि से पक्षियों से अधिक अच्छा होना कठिन है। प्रकृति
में केवल पुष्पों के रंगों को छोड़, जन्तुओं का कोई अन्य समूह पक्षियों के रंगों
को विविधता और सुन्दरता की बराबरी नहीं कर सकता। दूरबीनों और
कैमरों की मदद से पक्षियों के अध्ययन ने. सारे विश्व में लाखों पक्षी-निरीक्षकों
(bird watchers) को कभी समाप्त न होने वाला घरों के बाहर एक स्वस्थ
मनोरंजन प्रदान किया है। आधुनिक स्नायु-रोग प्रसित सभ्यता के अतिउच्च
संवेदनशील व्यक्तियों को पक्षियों के सुमधुर संगीत और अद्भुत कार्य-
कलाप अत्यावश्यक प्राकृतिक टॉनिक एवं अस्थाई राहत प्रदान करते हैं।
हज़ारों पंदयात्री, दूरबीन तथा कैमरा-उत्साही और पक्षी क्लबों के सदस्य
मनुष्य के इन पिच्छ-आवरित मित्रों के अध्ययन के प्रति समर्पित हैं। इस
प्रकार की अभिरुचियों से पक्षियों को अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षा एंव संरक्षता
प्राप्त होते हैं।
हानिकारक पक्षी
Injurious birds
अपनी समस्त विशेषताओं के बावजूद पक्षी पूर्णरूप से मानव जाति के लिये
लाभदायक नहीं हैं। उल्टे, अनेक पक्षी मनुष्य जाति को कुछ हानि भी
पहुँचाते हैं।
कृषि को अभिशाप
Menace to agriculture
कीट-भक्षी पक्षी हानिकारक कीटों के साथ लाभदायक कीटों को भी नष्ट कर
देते हैं। कुछ पक्षी नये रोपे गये बीजों, छोटे पौधों अथवा परिपक्व बीजों, फलों
और बेरियों (berries) को खा कर फसलों को हानि पहुँचाते हैं। कभी-कभी
इस प्रकार की हानि पर नियत्रंण आवश्यक होता है। भारत के मालवा प्रदेश
में किसान अपने खेतों में कौवों को देखकर क्रोधित हो उठते हैं क्योंकि वे
खेतों में लगी मूँगफलियाँ खा जाते हैं। पूर्वीय तथा मध्य ऑस्ट्रेलिया में बहुत
पहले इंगलैंड से आयात की गई इक्की-दुक्की गौरैयाँ अब फ़सलों की
अत्यन्त नाशक जीव बन चुकी हैं। गौरैया को आश्रय देने वाले व्यक्ति पर
भारी जुर्माना किया जाता है। चीन में पूरे देश में चलाये गये विरोधी अभियान
के फलस्वरूप गौरैयाँ लगभग समाप्त हो चुकी हैं।
आखेटी पक्षियों व अन्य जन्तुओं के नष्टकर्ता
Destroyer of game birds and other animals
मुर्गी पालन-बाड़ों में उनके द्वारा किए गये यदा-कदा विध्वंसों और आखेटी
तथा गायक पक्षियों पर उनके आक्रमणों के कारण अनेक प्रकार के बाज़,
उल्लू और अन्य पक्षी मार दिये जाते हैं। न्यूज़ीलैंड का शुक या तोता नेस्टर
नोटैबिलिस (Nester notabilis) बीमार और दुर्बल भेड़ों के वृक्कों और वसा
को निकाल कर खा जाने का आदी है। बगुलों समान मछली-भोजी पक्षी
मत्स्य-उद्योग को बहुत हानि पहुँचाते हैं।
फलों और संग्रहित अनाजों के नाशक जीव
Pests of fruits and stored grains
फल-भक्षी पक्षी, जैसे तोते, बाग़ों में फलों को असीम हानि पहुँचाते हैं। वे न
केवल पके फल खाते हैं, बल्कि खेल-खेल में कच्चे फलों को भी काटकर
भूमि पर गिरा देते हैं। अन्य पक्षी बाग़ों की कुछ विशेष बन स्पतियों का भारी
नुकसान करते हैं। जल-मुर्गाबी और फेज़ेण्ट्स अनाज के खेतों में प्रवेश कर
बढ़ते हुए नन्हें पौधों के कोमल तनों को, अथवा काटने से पहले ही फसल
को नष्ठ कर देते हैं। गौरैया धान्यागारों में संग्रहित अनाजों की सर्वाधिक
सामान्य नाशक होती हैं, जहाँ वे न केवल अनाजों के लिये बल्कि नाशक
कीटों को खाने के लिये भी जाती हैं।
रोग प्रसार
Spread of disease
अनेक पक्षी नाशक-रोगाणुओं को अपने शरीर में रखने वाले कीटों और
कृमियों को खाते हैं। इस प्रकार वे रोगाणुओं के द्वितीयक पोषियों के रूप में
रोगों के प्रसार में सहायता करते हैं। अनेक पक्षी हानिकारक लारवों के
वितरण में सहायता करते हैं, जो अन्यथा अवरोधकों के और तेज़ गति के
अभाव के कारण अपने उपयुक्त पोषकों (जन्तु या पौधे) तक नहीं पहुँच
सकते।
मधुमक्खियों के नाशक
Pests of honey bees
मधु-निर्देशक (honey guides), कठफोड़वा से सम्बद्ध, छोटे धूमिल पक्षी
होते हैं, जो मुख्यतया अफ़्रीका में पाये जाते हैं। वे मधुमक्खियों और बरों के
श्रृंगकों को खाते हैं, लेकिन कई हज़ार कीटों से भरे छत्तो पर आक्रमण करने
में समर्थ नहीं होते हैं। इस घृणित कार्य में एक छोटा सा बिज्जू (badger) एक
अस्थाई साझेदार की भूमिका निभाता है। बिज्जू मधु का शौकीन होता है,
परन्तु परन्तु उसकी छोटी टाँगे उसे मधु की खोज में दूर तक ले जाने में
असमर्थ होती हैं। जब पक्षी को कोई छत्ता मिलता है तो वह बिज्जू को उस
तक निर्देशित करता है। अपनी दंशरोधक खाल और मोटे बालों के आवरण
द्वारा आश्वस्त बिज्जू छत्ते को तोड़कर मधु खाता है जबकि पक्षी उन अभागे
भंगकों को खाता है जो अव्यवस्थित रूप से खुले में लुढ़क जाते हैं। कभी-
कभी एक मनुष्य पक्षी व जन्तु के ज़लूस को देख कर स्वयं भी उसमें मिल
जाता है और मधु का अपना भाग ग्रहण करता है।
सार
Conclusion
कुछ भी हो, मोटे तौर पर पक्षियों के आंकलन का चिट्ठा (balance sheet)
सदैव उनके पक्ष का अधिक समर्थन करता है।
कुल मिला कर ये केवल नाम मात्र के हानि है इनसे कोई ख़ास फर्क नहीं
पड़ता है न ही इनसे इकोसिस्टम बिगड़ता है न ही फ़ूड चैन पर कोई गहन
प्रभाव होता है इसीलिए पक्षी लाभदायक होते है
निकोबार पक्षी का शिकार छोटे पत्थर पाने के लिए क्यों किया जाता है
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