Where did the Vulture go? गिद्ध कहां गये, क्यों नहीं नज़र आते गिद्ध,
Where did the Vulture go?
गिद्ध कहां गये
क्यों नहीं नज़र आते गिद्ध
Vulture Bird
दुनिया बनाने वाले ने दुनिया बनाते वक्त हर एक किसी को एक दस्तूर के तहत जिम्मेदारी बखूबी
सौपी है इकोसिस्टम का बैलेंस बनाए रखने के लिए हर एक किसी की अहम भूमिका है
चाहे वो इंसान हो या पेड़ पौधे या जीव जंतु यह सच है कि इंसान कायनात की सर्वश्रेठ रचना है
लेकिन केवल इंसान की मौजूदगी भर से इकोसिस्टम अच्छी तरह नहीं चल सकता इसके लिए हर
एक मखलूक की मौजूदगी जरुरी है
इसलिए आज हम बात करेंगे एक ऐसे परिंदे की जिसे हमने इस भाग दौड़ भरी जिंदगी के दौर में
भुला दिया और उसने हमें भुला दिया इस परिंदे का नाम है गिद्ध या वल्चरस
भारत से कहां गए गिद्ध क्यों नहीं नजर आते हैं गिद्ध एक वक्त था कि भारत में गिद्धो के झंडों के
झुंड नजर आया करते थे
इस पर हम बात करें इससे पहले जान लेते हैं गिद्धों की कुछ रोचक जानकारियां|
दुनिया भर में गिद्धों 22 प्रमुख प्रजातिया पायी जाती है
Spices of Vulture
Cinereous vulture, Gyps fulvus
Griffon vulture, gyps Monaches
White romped vulture, Gyps bengalensis
Ruppel's vulture, Gyps repelled
Indian vulture, Gyps indicus
Slender-billed vulture, Gyps tenebrosities
Himalayan vulture, Gyps Himalayan
White-backed vulture, Gyps africanus
Cape vulture, Gyps Corrothers
Hooded vulture, Necropsies Monaches
Red-headed vulture, Sacro gyps calvus
Lappet-faced vulture, Targus tracheliotos
White-headed vulture, Trigonogyps occipitalis
Bearded vulture (Lammergeier), Gypaetus barbatus
Egyptian vulture, Neophron percnopterus
Palm-nut vulture, Gypohierax Angol
भारत में 9 प्रजातिया पायी जाती है
लेकिन अब ज्यादातर प्रजातिया विलुप्त होने की कगार पर है इसीलिए इस का संरक्षण जरुरी है
Scientific Classification
Scientific name - Gyps indicus
Kingdom - Animalia
Domain - Eukaryotes
Phylum - Cordata
Class - Aves
Order - Falconiformes
Family - Cathartidae
Common name - Vulture
Hindi name - Giddh
Scientific name - Gyps indicus
Vulture Fly
गिद्ध अपने खाने की तलाश में एवरेस्ट से ऊंची उड़ान भरते हैं ताकि एक बड़े क्षेत्र पर नजर डाली
जा सके इस उड़ान के दौरान इन्हें कोई सरहद नहीं रोक पाती
हजारों फीट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण जहां दूसरे परिंदे मर जाते हैं लेकिन गिद्ध
वहा भी जिंदा रहता है गिद्ध नरवस किस्म का जीव है जब कोई इसकी तरफ आता है तो उलटी
करके डरा कर रोकने की कोशिश करते है उलटी करने का दूसरा फायदा ये होता है की वजन
हल्का होने से उड़ने में आसानी होती है क्योकि गिद्ध बड़े व वजनी पक्षी है
Urine of Vulture
गिद्धों का करामाती पेशाब तुर्की के गिद्ध अपने पैरों पर पेशाब करते हैं भले ही गिद्धों की यह बात
आपको अच्छी ना लगे लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि गिद्ध सड़े गले मांस पर खड़े होने के
कारण अपने पैरों को इंफेक्शन से बचने के लिए पेशाब करते हैं क्योंकि यूरिन में एंटीसेप्टिक गुण
होता है
Digestive System of Vulture
गिद्धों में मजबूत डाइजेस्टिव सिस्टम शक्तिशाली पाचन क्रिया होती है गिद्ध दुनिया का एक इकलौता
ऐसा पक्षी है जो अपने खाने में 70 से 80 परसेंट तक हड्डियों को भी शामिल कर न्यूट्रिशन एलिमेंट
हासिल कर लेता है गिद्धों के पेट का एसिड इतना तेज होता है कि हैजा और एंथ्रेक्स के बैक्टीरिया
को भी नष्ट कर देता है
Decline of Vulture
प्रकृति के सफाई कर्मी यानी गिद्ध एक वस्क मृत मवेशी को मिनट में खाकर वातावरण को साफ
बनाए रखते हैं लेकिन हमारी लापरवाही के कारण आज गिद्ध लुप्त होने की कगार पर है
जानते हैं क्यों नजर नहीं आते गिद्ध कहां गए गिद्ध 1990 के दशक के पहले भारत में गिद्धों की
संख्या लगभग 4 करोड़ थी लेकिन अब गिद्ध की संख्या में 95% तक की कमी आई है इस तरह के
रुझान हिंदुस्तान के साथ-साथ नेपाल, पाकिस्तान, वर्मा,श्रीलंका,एशिया,यूरोप, और अफ्रीका में भी
देखे गए हैं
वैज्ञानिकों की रिसर्च से पता चलता है पालतू पशुओं में इस्तेमाल हो रही कुछ दबाए गिद्धों की जिंदगी
बर्बाद कर रही है आप सोच रहे होंगे कि वह कौन सी दवाई हैं और किस तरह गिद्धों की जिंदगी को
बर्बाद कर रही है
आईए जानते हैं पूरी हकीकत मुख्य रूप से ये दो दवाई हैं जो गिद्धों की लाइफ को बर्बाद कर रही हैं
1 Oxytocin
2 Diclofenac, ऑक्सीटोसिन और डाइक्लोफिनेक
ऑक्सीटोसिन पशुओं का दूध निकालने के लिए इस्तेमाल की जाती है डाइक्लोफिनेक पशुओं
में दर्द व सूजन के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है
इस इलाज के दौरान जब किसी पशु की जान नहीं बच पाती है और वह मर जाता है तो इसे बाहर
फेंक दिया जाता है और उसे गिद्ध खाते हैं यह दबाए गिद्धों के शरीर में पहुंच जाती हैं यह दोनों
दवाई अलग-अलग तरीके से गिद्धो पर रिएक्ट करती हैं
ऑक्सीटोसिन गिद्धों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर प्रभावित होती है गिद्धों को बाझ बनती है गिद्ध मेट
तो करते हैं लेकिन अंडे नहीं रखते इससे गिद्धों की जनरेशन बर्बाद होती है
डाइक्लोफिनेक बड़ी मशहूर दवा है एंटी इन्फ्लेमेटरी कैटेगरी की ड्रग्स है इसे NSAID भी कहते हैं
और इसके कारण गिद्धो की किडनी फेल हो जाती है क्योंकि यह गिद्धों के यूरिनरी सिस्टम पर
प्रभावित होती है और गिद्धों की किडनी फेल होने के बाद 12 से 24 घंटे के अंदर गिद्ध की मौत हो
जाती है
जब इस तरह की रिसर्च सामने आई और गिद्धों की करोड़ों की संख्या हजारों में सिमटने लगी तब
सरकार जागी कई संस्थाएं सामने आई संरक्षण का काम शुरू किया गया तब तक बहुत देर हो चुकी
थी ऑक्सीटोसिन और डाइक्लोफिनेक अपना काम पूरा कर चुकी थी
भारत सरकार ने डाइक्लोफिनेक के पशुओं में इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन अवैध
उपयोग जारी रहे
Reproduction of Vulture
गिद्धों का प्रजनन :-
गिद्ध 5 वर्ष का प्रजनन के काबिल होता है विशेषज्ञों के मुताबिक गिद्ध
जल्दी अपना साथी या मीटिंग पेअर नहीं बनाते गिद्ध मई, से अक्टूबर के
बीच प्रजनन करते हैं मादा एक ही अंडा देती हैं अगर यह अंडा किसी
कारणवश गिर जाए या गंदा हो जाए तब भी गिद्ध दोबारा अंडा नहीं देते
यह साल में एक बार ही अंडे देते हैं वह भी एक ही अंडा देते हैं और अंडे
से बच्चा निकालने की संभावना 50% तक होती है
अंडे से 55 दिन यानी दो माह में बच्चा निकलता है बच्चा चार माह तक
घोसले में रहता है फिर उड़ाने के लायक होता है तो इस प्रकार गिद्धों को
प्रजनन और बच्चे की देखभाल में 6 महीने का लंबा वक्त लगता है
यही कारण है कि गिद्ध अपना कुनबा तेजी से नहीं बढ़ा पा रहे हैं क्योंकि
नर्वस किस्म के जीव होने के कारण गिद्धो को प्रजनन के मामले में शर्मिला
कहा जा सकता है अब आप समझ गए होंगे कि गिद्धो की आबादी बढ़ना
कितना मुश्किल काम है
लेकिन यह सब हमारी लापरवाही के कारण हो रहा है अगर इंसान ने गिद्धों को
ऑक्सीटोसिन और डाइक्लोफिनेक युक्त भोजन न खिलाए होता और
वातावरण को दूषित न किया होता पर्यावरण को बर्बाद ना किया होता तो
शायद इस मुश्किल का सामना न करना पड़ता इसलिए प्रकृति के सफाई
दूत को विलुप्त होने से बचने के लिए सरकार और संस्थाओं के साथ
मिलकर प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य है कि पर्यावरण की रक्षा करें ताकि
गिद्धों को बचाया जा सके
गिद्ध क्यों जरुरी है
क्यों जरूरी है गिद्ध घंटे का काम मिनट में करने में माहिर गिद्ध सड़ा गला मांस खाकर वातावरण
को साफ कर बीमारियों को फैलने से रोकते हैं और हमें महामारी से बचते हैं जबकि आज विकल्प
के रूप में कुत्ते कौवे आदि सड़ा गला मांस खाते हैं लेकिन यह अपने साथ के बीमारी भी लाते हैं
क्योंकि गिद्धो को खुदा ने ऐसी सलाहियत दी है कि सड़ा गला मांस खाने और उसी में रहने के
बावजूद कोई बीमारी अपने साथ नहीं लाते क्योंकि इनका शरीर संक्रमण फैलने वाले बैक्टीरिया को
स्वतः ही नष्ट कर देता है
Number of Vulture
भारत में 1980 के दशक में 80 मिलियन यानी 8 करोड़ 1990 के दशक में 40 मिलियन यानी 4
करोड़ सन 2000 के दशक में इनकी संख्या लाखों से हजारों में रह गई 2020 आते आते इनकी
आबादी चंद हजारों में ही सिमट कर रह गई आज स्थिति ऐसी है कि गिद्धों की अधिकांश प्रजातियां
विलुप्त होने की कगार पर हैं अगर धरती पर गिद्ध ना रहे तब क्या होगा गिद्ध हमारे लिए कितने
लाभदायक है
Scavenger : प्राकृतिक सफाई कर्मी
चलिए जानते हैं गिद्ध क्यों जरूरी है गिद्ध सारी दुनिया की बीमारियों से रक्षा कर महामारी से बचाते
है अब आप सोच रहे होंगे की गिद्ध सारी दुनिया को बीमारियों से कैसे बजाते हैं
जबकि दुनिया में हर महाद्वीप हर देश हर प्रदेश का पर्यावरण अलग अलग है बात तो सही है दुनिया
में हर देश हर प्रदेश का पर्यावरण टेंपरेचर जलवायु अलग-अलग है
दुनिया भर में गिद्धों की 22 प्रजातिया पायी है अलग-अलग तरह के गिद्ध अलग अलग तरह
के तापमान जलवायु और वातावरण में पैदा होते हैं और यह अपने इलाके को बीमारियों से बचते हैं
गिद्ध अपने भोजन की तलाश में
आसमान में बादलों को चीरते हुए झंडे में उड़ते हुए निकल पड़ते हैं आसमान में बादलों को चीरते
हुए निकल पड़ते हैं
इस उड़ान के दौरान यह देखते हैं की धरती पर कहां पर मृत जानवर का शब पड़ा है इसमें
खतरनाक बैक्टीरिया वायरस पैदा होने वाले होते हैं जैसे ही गिद्धों की नजर इस शब पर पड़ती है तो
फटाफट मिनटों आसमान से जमीन पर उतर आते हैं और सड़े गले शब मिनटों चट कर जाते हैं
इसलिए इन्हें नेचुरल क्लीनर या प्राकृतिक सफाई कर्मी भी कहा जाता है ये सफाई कर्मी सड़े गले
मास को इस तरहा साफ करते है की हड्डियों को भी अपना भोजन बना लेते हैं
इसलिए साइंटिस्ट बताते हैं इकोसिस्टम का बैलेंस बनाए रखने में गिद्ध अहम भूमिका निभाते हैं पृथ्वी
पर केवल गिद्ध ही है जो बदबूदार सड़े गले मास को फटाफट खाकर साफ कर देते हैं अगर सड़े
गले मास को साफ न किया जाये तो इसमें कई प्रकार के खतरनाक बैक्टीरिया वायरस जन्म लेते हैं
और बीमारी फैलते हैं जो महामारी का रूप भी ले सकती है
Conservation of Vulture
इसीलिए गिद्धों का संरक्षण किया जा रहा है भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती थी लेकिन
पिंजौर वल्चरस प्रिजर्वेशन सेंटर में तीन प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है और इनकी तादाद में
भी बढ़ोतरी हो रही है लेकिन उतनी नहीं जितनी कभी हुआ करती थी इसीलिए इस देश कीमती
परिंदा को बचाने के लिए आप भी सहयोग करें
गिद्ध के अंडे की कीमत 50 लाख रूपये
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